Social Sciences, asked by raypuremahak, 1 month ago

हमारे आस-पास सामाजिक समानता की स्थिति के दो उदाहरण लिखिए?​

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Answered by vandana88264
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economic and social work

Answered by Anonymous
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Answer:

सामाजिक समानता किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस लिहाज़ से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

Explanation:

दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग-अलग तरीके अख्तियार करने पर समानता के विचार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ उभरती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील प्रमुख हैं।

कानूनी समानता :  कानूनी समानता का मतलब है कानून के सामने समानता और सबके लिए कानून की समान सुरक्षा। अवधारणा यह है कि सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं, इसलिए कानून के सामने समान हैसियत के पात्र हैं। कानून अंधा होता है और इसलिए वह जिस व्यक्ति से निबट रहा है उसके साथ कोई मुरौवत नहीं करेगा। वह बुद्धिमान हो या मूर्ख, तेजस्वी को या बुद्धू, नाटा हो या कद्दावर, गरीब हो या अमीर, उसके साथ कानून वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा औरों के साथ करेगा। लेकिन उपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी बालक या बालिका के साथ किसी वयस्क पुरुष या स्त्री जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा और बालक या बालिका के साथ मुरौवत किया जाएगा। (दुर्भाग्यवश, कानूनी समानता का मतलब जरूरी तौर पर सच्ची समानता नहीं होती, क्योंकि जैसा कि हम सभी जानते हैं, कानूनी न्याय निःशुल्क नहीं होता और अमीर आदमी अच्छे से अच्छे वकील की सेवाएँ प्राप्त कर सकता है और कभी-कभी तो वह न्यायाधीशों को रिश्वत देकर भी अन्याय करके बच निकल सकता है। शुद्ध उदारवादी व्यवस्था हमें कानून के सामने सैद्वांतिक समानता तो प्राप्त रहेगी लेकिन उसका लाभ उठाने के लिए हमें समय और पैसे की जरूरत होगी और अगर हमारे पास ये दोनों नहीं हैं तो व्यवस्था ने हमसे जिस समानता का वादा किया है वह निरर्थक होगी।

राजनीतिक समानता : राजनीतिक स्वतंत्रता का मतलब बुनियादी तौर पर सार्वजनीन मताधिकार और प्रतिनिधिक सरकार है। सार्वजनीन मताधिकार का मतलब यह है कि सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार है और एक व्यक्ति का एक ही मत होता है। प्रतिनिधिक सरकार का अर्थ यह है कि सभी को बिना किसी भेदभाव के चुनाव में स्पर्धा में खड़े होने का अधिकार है और वह सार्वजनिक सेवा के लिए चुनाव में खड़ा होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी को मत देने के लिए विवश किया जा सकता है और प्रत्येक को अपनी पसन्द जाहिर करनी है या यदि कुछ लोगों को गलत प्रभाव डालकर मतदान करने से विमुख कर दिया जाता है या चाहे जिसे मत देने के लिए राजी कर लिया जाता है तो उसके संबंध में राज्य कुछ खास नहीं कर सकता और अगर ज्यादातर लोग या काफी बड़ी संख्या में लोग मतदान नहीं करते और इस प्रकार सरकार के प्रतिनिधिक स्वरूप को कमजोर करते हैं तो राजनीतिक समानता की शुद्ध उदारवादी समझ के अनुसार किसी प्रकार की राजनीतिक असमानता का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है। (उदाहरण के लिए, अमरीका में, जो सभी नागरिकों को पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता और समानता प्रदान करने वाला लोकतंत्र होने का दावा करता है, लगभग केवल आधे लोग ही चुनावों में मतदान करते हैं। जो लोग मतदान नहीं करते वे मुख्य रूप से गरीब तबके के या काले लोग और उनमें से भी खासतौर से गरीब काले लोग होते हैं। उदारवादी परंपरा में यह कोई चिंता का विषय नहीं है- संवैधानिक रूप से तो समानता की गारंटी दे दी गई है और वह सबको मिली हुई है।

आर्थिक और सामाजिक समानता : आर्थिक और सामाजिक समानता की अभिधारणा का अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग है। आर्थिक समानता से प्रारंभिक उदारवादियों का तात्पर्य केवल यह था कि हर व्यक्ति को, उसकी पारिवारिक या आर्थिक स्थिति चाहे जो हो, अपना धंधा और पेशा चुनने का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अनुबन्ध करने की स्वतंत्रता है, ताकि जहाँ तक अनुबंधात्मक दायित्वों का संबंध है, देश के हर व्यक्ति के साथ समान व्यवहार हो सके। धीरे-धीरे स्थिति इस अभिधारणा की दिशा में बदलने लगी कि प्रत्येक को पूर्ण मानव प्राणी के रूप में जीने का समान अवसर प्राप्त हो। (इसमें कोई संदेह नहीं कि यह बदलाव एक हद तक पूँजीवाद की उस समाजवादी और मार्क्सवादी मीमांसा का परिणाम था जिसे सकारात्मक उदारवाद के प्रादुर्भाव से पहले अधिकाधिक स्वीकृति प्राप्त होती जा रही थी और जिसके कारण ही शायद 1917 की रूसी क्रांति हुई उस मीमांसा की स्वीकृति का एक और कारण यह था उसमें आर्थिक समानता पर जोर दिया गया, जिसकी परिभाषा सबके लिए लगभग समान आर्थिक स्थितियों के रूप में की गई।

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