हमारे बुजुर्ग का बचपन हमारे बचपन से किस प्रकार किया
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Explanation:
हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।
सपने सुहाने लड़कपन के...
छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।
जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।
एक पुरानी हिन्दी फिल्म 'दूर की आवाज' में जानी वॉकर पर फिल्माए गए गीत की पंक्तियां कुछ यूं ही बयान करती हैं-
' हम भी अगर बच्चे होते
हम भी अगर बच्चे होते
नाम हमारा होता गबलू-बबलू
खाने को मिलते लड्डू
और दुनिया कहती हैप्पी बर्थडे टू यू'
उपरोक्त लाइन में नायक की भी यही चाहत रहती है कि काश! हम भी अगर बच्चे होते तो बचपन को बेफिक्री से जीते और मनपसंद चीजें खाने को मिलतीं।
हम में से अधिकतरों का बचपन गिल्ली-डंडा व गुलाम-डांडा खेलते तथा पतंग उड़ाते बीता है। इन खेलों में जो मानसिक व शारीरिक आनंद आता है, वो कम्प्यूटरजनित खेलों में कहां? ये देसी खेल अब तो आजकल के बच्चों के मनोरंजन से निहायत ही बाहर होते जा रहे हैं, क्योंकि वीडियो गेम, टीवी, कम्प्यूटर व मोबाइल ने इन खेलों की जगह ले ली है। आजकल के बच्चों को फटाफट खेल पसंद हैं। मैदान में खेलने से शारीरिक व मानसिक विकास होता है, जो अब नदारद-सा होता जा रहा है।