हमारा हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला इजा देश आकार और आत्मा गोलो तिगासे महान और सुन्दर हैं। चाहे जमीन गलले वाला हिम का प्राचिर चाहे कशील जमने वाला समदू चाहे सावरे भरे गैद्य गडे लपटोले सांस लेताहमा बदर है। जैसे मत के स्का का खजाना सपूर्ण देवगह की खंडित कर देता है। वैसे मारे देश की अखंडता के लिए निधिधता की स्थिती। यदि इस भौगोलिक विविधता में व्याप्त सांस्कृतिक एकता न होती तो याविधनकी पति उनका संग्रह मात्र रह जाता
प्रश्न इस गधाश का शिरबाक बताईसे मा
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उसका वाह्य सौंदर्य विविधता की सामंजस्यपूर्ण स्थिति है और आत्मा का सौंदर्य विविधता में छिपी हुई एकता की अनुभुति है।
चाहे कभी न गलने वाला हिम का प्राचीर हो, चाहे कभी न जमने वाला अतल समुद्र हो चाहे किरणों की रेखाओं से खचित
हरीतिमा हो, चाहे एकरस शुन्यता ओढे हुए मरू हो, चाहे साँवले भरे मेघ हों. चाहे लपटों में साँस लेता हुआ बवंडर हो सब
अपनी भिन्नता में भी एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता देते हैं। जैसे मूर्ति के एक अंग का टुट जाना संपूर्ण देव-विग्रह को
खंडित कर देता है, वैसे ही हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति है। यदि इस नौगोलिक विविधता में व्याप्त
सांस्कृतिक एकता न होती, तो यह विविध नदी, पर्वत वनों का संग्रह-मात्र रह जाता । परंतु इस महादेश की प्रतिभा ने
इसकी अंतरात्मा को एक रसमयता में प्लावित करके इसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है, जिससे यह आसमुद्र एक नाम की
परिधि में बँध जाता है। हर देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ एक भेतिक इकाई है, जिससे वह सनस्त
विश्व की भौतिक और भौगोलिक इकाई से जुड़ा हुआ है। विकास की दृष्टि से उसकी दूसरी स्थिति आत्म-रक्षात्मक तथा
व्यवस्थापरक राजनीतिक सत्ता में है।