हमारी हरी हारिल की लकरी। मनकम वचन वेद - नंदन उर, यह दृढ करि पकरी। जगत सोबत स्वप्न दिवस निसि कान्ह कान्ह जकरी। सुनतजोग लागत है ऐसौ ज्यों करूई सकरी। सु तीर्थी दमकी ले आए देखा न करी। यह तो सूर तिनहिं ले सौपी जिनके मन चकरी ।। क) हारिल की लकरी को कहा गया है? ख) गोपियों को डर था कि क्या पकड़ रखा है? ग) योग (जोग) शब्द सुनने पर गोपियों को केसा अनुभव होता है? घ) व्याधि को कहा गया है? ड। ) गोपियों ने याग - संदेश को सौंपने की बात कही है?
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हमारे हरि हारिल की लकरी.
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी.
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी.सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी.
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी.सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी.सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए,देखी सुनी न करी.
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी.सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी.सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए,देखी सुनी न करी.यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपौ,जिनके मन चकरी.
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Hi dear !!
Can you please mention the book,lesson and of which class of this question is this question of ??
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