Social Sciences, asked by singhgurmeet9771, 5 months ago

हमारे जीवन में टी .
वी की क्या भूमिका है​

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Answered by div2007
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Answer:

समझ में नहीं आता कि हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी टीवी का विरोध क्यों करते हैं। उन्हीं के प्रभाव में आकर कई लोग अपने घर से केबल कनेक्शन कटवा देते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चे टीवी देखकर बिगड़ जाएंगे। वे दरअसल टीवी के लाभ से परिचित नहीं हैं। इन्हें पता नहीं कि टीवी का हमारी अर्थव्यवस्था में, हमारे सामाजिक जीवन में कितना बड़ा योगदान है। भाई, मुझे तो टीवी के फायदे ही फायदे नजर आते हैं। आज के जमाने में रोजगार उपलब्ध कराने से बड़ी देशसेवा और क्या हो सकती है। टीवी आज प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह से लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध करा रहा है।

टीवी के चैनलों की संख्या सैकड़ों में पहुंच गई है। हर चैनल पर दिन भर कोई न कोई कार्यक्रम आता ही रहता है। इन कार्यक्रमों में न जाने कितने नायकों, खलनायकों, नायिकाओं, खलनायिकाओं, अतिरिक्त कलाकारों आदि को काम मिला हुआ है। इसी प्रकार हर कार्यक्रम के निर्माता, निर्देशक, स्क्रिप्ट राइटर, स्पॉट बॉय, कैमरामैन, ड्रेस डिजाइनर आदि तमाम लोगों को काम मिला हुआ है। 24 घंटे चलने वाले समाचार चैनलों में भी संवाददाताओं, कैमरामैनों, समाचार वाचकों से लेकर न जाने कितने लोगों को रोजगार मिला हुआ है। टीवी ने विज्ञापन उद्योग को नई गति दी है। विज्ञापन उद्योग के विस्तार से मॉडलों, विज्ञापन एजेंसियों, विज्ञापन लेखकों, कैमरामैनों, फोटोग्राफरों आदि को रोजगार मिला हुआ है।

ये तो हुए टीवी से सृजित होने वाले प्रत्यक्ष रोजगार, इसके अलावा बहुत से अप्रत्यक्ष रोजगार भी हैं, जिनकी प्राय: अनदेखी कर दी जाती है। टीवी है तो लोग देखेंगे ही। अरे भाई, देखने वाली चीज को लोग देखेंगे नहीं तो क्या करेंगे। आज बच्चे, बूढ़े, लड़कियां, युवतियां, महिलाएं सभी टीवी के दीवाने हैं। टीवी देखेंगे तो आंखें भी खराब होंगी। आंखें खराब होंगी तो आंखों के डॉक्टरों के रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। चश्मा उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा। जरा ध्यान से देखिए, पिछले कुछ सालों में चश्मा लगाने वाले बच्चों की संख्या कितनी बढ़ी है। सिर्फ नेत्र चिकित्सकों को ही नहीं दूसरे तरह के डॉक्टरों को भी टीवी से काफी फायदा पहुंचा है। दिन भर काम और आधी रात तक टीवी देखना यही आज आम कामकाजी आदमी की जिंदगी हो गई है। बेटाइम सोने और खाने से मरीजों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ गई है। मरीजों की संख्या बढ़ने से डॉक्टरों का व्यवसाय भी फला-फूला है। जाहिर है, डॉक्टरों का व्यवसाय बढ़ने से दवा उद्योग को प्रोत्साहन मिला है। केमिस्टों, चिकित्सा प्रतिनिधियों और उनके साथ जुड़े कर्मचारियों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़े हैं।

टीवी आने से पहले बच्चों के माता-पिता काम धंधे से लौट कर बच्चों को पढ़ाते थे पर अब घर आते ही वे टीवी से चिपक जाते हैं। साफ कहते हैं कि बच्चों को पढ़ाने की फुर्सत ही कहां मिलती है? सो बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्यूटर लगा दिए जाते हैं। इस तरह से ट्यूटरों और कोचिंग सेंटर वालों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं। आज जो हर गली मोहल्ले में ट्यूशन और कोचिंग सेंटर खुले हैं, इनके पीछे टीवी का बहुत बड़ा योगदान है। लगे हाथ यह भी उल्लेख कर दूं कि मां बाप जब बच्चों को पढ़ाया करते थे तो बच्चों की पिटाई भी खूब किया करते थे। आज भला कौन ऐसा ट्यूटर होगा जो बच्चों की पिटाई कर अपना व्यवसाय चौपट करना चाहेगा? टीवी ने और भी स्तरों पर कई क्रांतिकारी काम किए हैं। टीवी धारावाहिकों ने लोगों में विश्वास जगाया है कि इश्क की उम्र नहीं होती। जीवन के किसी भी मोड़ पर प्रेमिका मिल सकती है। साठ साल के आदमी के भीतर भी यह यकीन पैदा हुआ है कि एक प्रेम प्रसंग उसका इंतजार कर रहा है। उसके भीतर जवान होने की चाहत बढ़ गई है। देखिए, आज पुरुष ब्यूटी पार्लरों की संख्या कितनी बढ़ रही है। आज के लोगों में गजब का आशावाद पैदा हुआ है जबकि पहले के लोग तो नौकरी से रिटायर होते ही अपने को जिंदगी से रिटायर समझने लगते थे।

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