हम राज्य लिए मरते हैं.
सच्चा राज्य परंतु हमारे कृषक ही करते हैं।
जिनके खेतों में है अन्न,
कौन अधिक उनसे संपन्न?
पत्नी सहित विचरते हैं वे, भव-वैभव भरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
बे गो-धन के धनी उदार,
उनको सुलभ सुधा की धार,
सहनशीलता के सागर वे, श्रम-सागर तरते हैं।
स
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yes right ye poem hme bhi hai but ye hme syllabus mai se cut krvai hui hai
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पद्यांश का संदर्भ सहित वियाख्या
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