Hindi, asked by madhu9930, 3 months ago

हमारी संस्कृति, लोकगीत और संगीत का अटूट sambandh
है। कैसे?​

Answers

Answered by chintamanbhamre000
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Answer:

दूसरे लोककंठ में बसे गीतों और गाथाओं, लोकाचार के क्रमों ओर लोक की मर्यादाओं का उतना ही महत्व माना जाता है, जितना शास्त्रा विधि का है। लोकाचार और लोक जीवन का अपना स्थान है। ऐसा हिंदी साहित्य के विद्वान डॉ विद्यानिवास मिश्र मानना था। दरअसल, लोक जीवन से जुड़े ये लोक गीत हमारी संस्कृति की ही संगीतमय अभिव्यक्ति हैं।

Answered by Anonymous
7

Answer:

लोक भारत का एक अनुभवजन्य रूप है। ‘लोक‘ का अर्थ है – जो यहां है। लोक का विस्तृत अर्थ है – लोक में रहनेवाले मनुष्य, अन्य प्राणी और स्थावर, संसार के पदार्थ, क्योंकि ये सब भी प्रत्यक्ष अनुभव के विषय हैं। यह लोक अवधारणा मात्रा नहीं है, यह कर्मक्षेत्रा है। प्रत्येक कर्मकांड में लोक दो दृष्टियों से महत्वपूर्ण है-एक तो लोक में जो वस्तुएं सुंदर हैं, मांगलिक हैं उनका उपयोग होता है। सात नदियों का जल या सात कुओं का जल, सात स्थानों की मिट्टी, सात औषधियों, पांच पेड़ों के पल्लव, धरती पर उगनेवाले कुश, कुम्हार के बनाए दीए व बरतन, ऋतु के फल-फूल-से सब उपयोग में लाए जाते हैं। दूसरे लोककंठ में बसे गीतों और गाथाओं, लोकाचार के क्रमों ओर लोक की मर्यादाओं का उतना ही महत्व माना जाता है, जितना शास्त्रा विधि का है। लोकाचार और लोक जीवन का अपना स्थान है। ऐसा हिंदी साहित्य के विद्वान डॉ विद्यानिवास मिश्र मानना था।

दरअसल, लोक जीवन से जुड़े ये लोक गीत हमारी संस्कृति की ही संगीतमय अभिव्यक्ति हैं। इन गीतों के जरिए कोई भी इंसान जीवन से सीधे जुड़ जाता है, चाहे वह दुनिया के किसी कोने में हो। वह सहज ही पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना से सहज जुड़ जाते हैं। यही कारण है कि जिन फिल्मों में भी लोकाचार के दृश्य या गीत होते हैं, वो फिल्म हिट भी होते हैं, और सालों-सालों के बाद भी लोग उसे दर्शक याद रखते हैं। यह लोकगीतों के रंग में भीने गीत-‘मैं तो छोड़ चली बाबुल के देश‘, ‘पान खाए सैंयां हमार‘, ‘जब तक पूरे ना हो फेरे सात‘, ‘कहे तो से सजना‘, ‘रेलिया बैरन‘ ‘ससुराल गंेदा फूल‘ को हर पीढ़ी के दर्शक-श्रोता सुनते।

बहरहाल, हमें यह शहरी और गंाव दोनों जीवन का आनंद लेने का सौभाग्य मिला। याद आता है, बचपन के वो दिन जब गांव में घर के आस-पास के घरों से सुबह-सुबह गीत मंगल के सुर कानों में गंूजने लगते थे। गेहूं या दूसरे अनाजों को जांता यानि चक्की में पीसते हुए, उन गीतों को गुनगुनाती थीं। उन दिनों तो यह सहज ही लगता था। पर आज गांव के वो गीत मौन हो गए हैं। क्योंकि, वहां भी जीवनशैली बदल गई है।

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