हमारी संस्कृति पर पश्चिमी देशों का प्रभाव कैसा पड़ रहा है|
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मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है।भारतीय संस्कृति वेदों और आर्यों की संस्कृति है,जो पाँच हज़ार वर्षों से भी पुरानी है|किसी भी देश का अपना इतिहास होता है, परम्परा होती है। यदि देश को शरीर माने तो संस्कृति उसकी आत्मा है। किसी भी संस्कृति में आदर्श होते हैं, मूल्य होते हैं। इन मूल्यों की संवाहक संस्कृति होती है। भारतीय संस्कृति में चार मूल्य प्रमुख हैं— धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
20वीं सदी से 21वीं सदी के आरम्भ तक, बढ़ते वैश्वीकरण के आगमन हुआ| वैश्वीकरण ने विशेष रूप से दूसरी प्रपंच युद्ध के अंत के बाद से व्यापक रूप से पश्चिमी विचारों का प्रसार किया है कि लगभग सभी आधुनिक देशों या संस्कृतियों पर पश्चिमी संस्कृति का असर पड़ा |मानव मस्तिष्क पर विपरीत असर कर रही है|पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते इस प्रभाव हमारे देश की संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जिसकी रक्षा और सुरक्षा दोनों युवाओं के हाथ में है।संस्कृति का उद्देश्य मानव जीवन को सुंदर बनाना है।
सच यही है वे दोनों संस्कृतियां जिनमें से हमें क्या चुनना है यह हमारे ऊपर निर्भर है। हम लोगों ने पश्चिमी सभ्यता का उन बातों को अपनाया जो भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल थीं। जिस भारतीय समाज में हम रहते हैं वहां का वातावरण, सभ्यताएं, मर्यादाएं नैतिक मूल्य कुछ और ही हैं।सबसे पहले अगर हम पहनावे की बात करें तो जहाँ भारतीय संस्कृति का पहनावा सूट, साड़ी, कुर्ता-पाजामा आदि है तो वहीं पाश्चात्य संस्कृति का पहनावा पैंट-शर्ट, स्कर्ट-टॉप आदि है। कम कपड़े पहन अधिक से अधिक शरीर का प्रदर्शन करना इस आधुनिक काल का फाशन बन गया है|हमें सांस्कृतिक विरासत में मिले शास्त्रीय संगीत व लोक संगीत के स्थान पर युवा पीढ़ी ने पॉप संगीत को स्थापित करने का फैसला कर लिया है।विश्व में आज सौंदर्य प्रतियोगिता कराई जा रही है, जिससे सौंदर्य अब व्यवासाय बन गया है।ये भारतीय संस्कृति के लिए बहुत दुख: की बात है।प्रत्येक सरकारी कार्यालय में हिंदी और अंग्रेजी द्विभाषी रूप में काम करना आवश्यक है लेकिन आज भी कई सरकारी कार्यालय हैं जिनमें अंग्रेजी में ही कार्य किया जाता है, मीटिंग की जाती हैं और सम्प्रेषण भी अंग्रेजी में किया जाता है।
जहाँ पहले रिश्तों की अहमियता थी शादियां पूरी जिंदगी चलती थी आजकल रिश्ते बहोत नाजुक हो गए|आज अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति के रंग में रंगने को ही आधुनिकता का पर्याय समझा जाने लगा है। अवैद्य संबंधो की बाढ़ आ गई है। इस कारण अपराध की रोज बढ़ोतरी हो रही है। इन विचारों ने लोगों को कितना आजाद किया ये वही जाने पर मैं यह जानती हूँ कि धर्म और देश विनाश की ओर जा रहा है। यदि अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो इस आधुनिकता और वास्तविकता के बीच रहनेवाला एक मात्र छोटीसी रेखा का अंतर समझना होगा। आधुनिकता के नाम पर हमारी संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है।बात स्त्री और पुरूष को वर्गीकृत करने के लिए नहीं है जो भी मर्यादा के बाहर जाएगा वह दोषी है |
पाश्चात्य संस्कृति के भी सकारात्मक पहलू हैं। अगर उन्हें अपनाया जाए तो हमारा भारत देश और उसकी भारतीय संस्कृति भी काफी विकसित होगी। पाश्चात्य संस्कृति के विरुद्ध सोच रखने वाले लोगों को ये सकारात्मक पहलुओं से उपने सोच विचार कराना बहुत आवश्यक है| एक तरफ पाश्चात्य संस्कृति में पले-बसे लोग भारत आकर संस्कार और मंत्रोच्चार के बीच विवाह के बन्धन में बँधना पसन्द कर रहे हैं और हमें अपने ही संस्कार पुराने जमाने के और बकवास लगते हैं।
विदेशों में हर जगह सुव्यवस्था समाई हुई है। वहाँ कोई भी किसी के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता। हर काम सुचारू रूप से समय पर होता है। अंग्रेज समय के बहुत पाबंद होते हैं। हर काम व्यवस्थित ढंग से होने पर विदेश और विदेश के लोग तरक्की करते जा रहे हैं|येसी अछि बैटन को तो नजरंदास कर दस्ते है|अच्छाई को अपनाने केलिए हिच किचाते है|हम भले ही गाँधी की के आदर्शों को तिलांजलि दे रहे हैं पर अमेरिका में पिछले कुछ वर्षों में करीब पचास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों ने गाँधीवाद पर कोर्स आरम्भ किये हैं।
हमारे राष्ट्र में मूलभूत रूप से सांस्कृतिक एकता है। हमारी मूल संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ वाली संस्कृति है जिसका अस्तित्व सारे भारत में है। हमारे साहित्य में एकता है¸ एकरूपता नहीं¸ एकात्मता है।बुराई लोगों के दिमाग में होती है। जिसके पास संस्कार है उसे अच्छे और बुरे का भेद समझनेका क्षमता रहता है और जिसके पास संस्कार ना हो, लज्जा ना हो, तो उन लोगों को किसिभी संस्कृति में रहने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| वैसे गंदे लोग अच्छी बातों में भी गंदगी ढूंढने का प्रयास ही करते हैं।
हम एक बंद समाज में रहते हैं। अक्सर हम किसी ना किसी को पश्चिमी संस्कृति की बुराई करते सुन सकते हैं, जैसे कि वह बहुत खुली, आधुनिक या आकर्षक है और आज की पीढ़ी को बिगाड़ रही है। हम में से ज्यादातर लोगों को लगता है कि पश्चिमी संस्कृति हमारे मूल्यों को कमजोर कर रही है और समय के साथ हमारी संस्कृति खत्म हो जाएगी।
लेकिन क्या आपको लगता है कि अपनी गलतियों के लिए दूसरों पर दोष मढ़ना सही है? हमारे समाज में जो कुछ भी हो रहा है वह हमारी वजह से हो रहा है, ना कि किसी अन्य व्यक्ति या समाज की वजह से। क्या आधुनिक कपड़े पहनना, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना, फास्ट फूड खाना हमारे लिए पश्चिमीकरण है? सच तो यह है कि हम दुविधा में हैं। जहां हम हैं वहां हम रहना भी चाहते हैं और आकाश में उंची उड़ान भी भरना चाहते हैं। लेकिन जमीन में गहरी जड़ें रखकर उड़ने से आप किसी भी हालत में गिरते नहीं हैं।