हमारा देश का नाम भारत कैसे पड़?
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हमारे देश को पहले भारतवर्ष कहा जाता था। उसी से ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
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हमारे देश का नाम ' भारत' चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर पड़ा है किन्तु क्या आप यह जानते हैं कि ये भरत कौन थे? निश्चय ही आपका उत्तर होगा 'दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र', लेकिन यह असत्य है।
यह बात सही है कि दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र का नाम भी भरत था किन्तु इन भरत के नाम पर इस देश का नाम भरत नहीं रखा गया। इस देश का नाम भारत जिन चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर रखा गया वे ऋषभदेव-जयन्ती के पुत्र थे। ये वही ऋषभदेव हैं जिन्होंने जैन धर्म की नींव रखी। ऋषभदेव महाराज नाभि व मेरूदेवी के पुत्र थे। महाराज नाभि और मेरूदेवी की कोई सन्तान नहीं थी। महाराज नाभि ने पुत्र की कामना से एक यज्ञ किया जिसके फ़लस्वरूप उन्हें ऋषभदेव पुत्र रूप में प्राप्त हुए।
ऋषभदेव का विवाह देवराज इन्द्र की कन्या जयन्ती से हुआ। ऋषभदेव व जयन्ती के सौ पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े पुत्र का नाम 'भरत' था। भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए। इन्हीं चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारत' पड़ा। इससे पूर्व इस देश का नाम 'अजनाभवर्ष' या 'अजनाभखण्ड' था क्योंकि महाराज नाभि का एक नाम 'अजनाभ' भी था।
अजनाभ वर्ष जम्बूद्वीप में स्थित था, जिसके स्वामी महाराज आग्नीध्र थे। आग्नीध्र स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रियवत समस्त भू-लोक के स्वामी थे। उनका विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से हुआ था। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्र व एक कन्या थी। महाराज प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का स्वामी बनाया था, शेष तीन पुत्र बाल-ब्रह्मचारी थे। इनमें आग्नीध्र को जम्बूद्वीप का स्वामी बनाया गया था। श्रीमदभागवत (५/७/३) में कहा है कि-
'अजनाभं नामैतदवर्षभारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति।'
इस बात के पर्याप्त प्रमाण हमें शिलालेख एवं अन्य धर्मंग्रन्थों में भी मिलते हैं। इसका उल्लेख अग्निपुराण, मार्कण्डेय पुराण व भक्तमाल आदि ग्रन्थों में भी मिलता है। अत: दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारत' होना केवल एक जनश्रुति है सत्य नहीं।