हमारे देश में सहकारी बैंकों की असफलता के क्या कारण हैं ? इन्हें उपयोगी बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए ?
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कार्यविधि में असमानता:
देशी बैंकरों की कार्यप्रणाली अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रहती है । इससे इनके बैंकिंग कार्यों का निरीक्षण एवं अंकेक्षण (Auditing) करना बहुत कठिन होता है । हिसाब-किताब एवं बही-खाते भी वे अपने हिसाब से रखते है ।
v. हिसाब-किताब की गोपनीयता:
देशी बैंकरों की समुचित कार्य प्रणाली गोपनीय रहती है । वे अपने हिसाब-किताब का न तो अंकेक्षण कराते है और न ही वार्षिक विवरण पत्रक का प्रकाशन करते हैं । इस प्रकार न तो रिजर्व बैंक और न ही केन्द्र अथवा राज्य सरकार को उनकी वित्तीय स्थिति के बारे में कोई जानकारी होती है ।
vi. मिश्रित गतिविधियों:
सामान्यतः देश बैंकर, बैंकिंग एवं गेर-बैंकिंग व्यवसायों में एक साथ चलाते हैं । वास्तव में यह प्रणाली बैंकिंग के सिद्धांतों के विपरीत है । एक अच्छे बैंकर से किसी भी दशा में गैर-बैंकिंग व्यवसाय नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उनके बैंकिंग व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसके साथ ही ऋण लेने वाले व्यक्तियों को भी कठिनाइयों उठाना पड़ती हैं ।
vii. ऊँची गाज दरें:
प्रायः देशी बैंकरों ब्याज दरें व्यापारिक बैंकों से बहुत अधिक होती है । इससे ऋणी व्यक्तियों का शोषण होता है । ब्याज दरों के अधिक होने का कारण यह है कि उनके पास पूँजी का अभाव होता है । सूखा एवं विपत्ति के सइस योजना को अस्वीकार करने के प्रमुख क