हमारे देश में विद्यालय एक प्रकार के मंदिर या आश्रम के समान थे | गुरु को साक्षात परमात्मा ही समझा जाता था तथा शिष्य पुत्र के समान समझे जाते थे | जहां सम्मान मिलना ही शक्ति प्राप्त करने का रहस्य रहा | प्राचीन काल में गुरु की शिक्षा , दान - क्रिया उनका आध्यात्मिक अनुष्ठान थी , परमात्मा प्राप्ति का एक साधन था । वह आज पेट पालने का एक शोध बन गई है । धन देकर विद्या खरीदने कि यह क्रय - विक्रय पद्धति निसंदेह इस भारतीय मिट्टी की देन नहीं है । *
प्रश्न 36 - भारतीय शिक्षा पद्धति की क्या विशेषता थी ?
क्रय-विक्रय करना
विद्यालय को मंदिर समझना
विद्यालय के महत्व को ना समझना
स्वयं के अनुसार विद्यालय को चलाना
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¿ भारतीय शिक्षा पद्धति की क्या विशेषता थी ?
➲ विद्यालय को मंदिर समझना
✎... भारतीय शिक्षा पद्धति की विशेषता रही है कि यहाँ विद्यालय को मंदिर समझा जाता था। भारतीय शिक्षा पद्धति में जो प्राचीन गुरुकुल होते थे, वह मंदिर के समान पवित्र माने जाते थे। वहाँ शिक्षा दान के समान प्रदान की जाती थी, वहां पर शिक्षा का क्रय-विक्रय नहीं होता था। गुरु द्वारा शिक्षा का दान करना उनके लिए एक आध्यात्मिक अनुष्ठान के समान होता था। शिक्षा परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग था। जबकि आज की आधुनिक शिक्षा पद्धति में शिक्षा की क्रय-विक्रय होता है और धन देकर शिक्षा खरीदी जाती है।
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