हमारी देशभक्ति धूल को माथे से ना लगाए तो कम से कम उस पर पैर तो रखे। किसान के
हाथ- पैर ,मुंह पर छाई हुई यह धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है? हम कांच को प्यार
करते हैं, धूलि भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है, भीतर की कांति आंखों से ओझल रहती है
लेकिन यह हीरे अमर है और हर दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने
अटूट होने का ही प्रमाण दिया है ,"हीरा वही घन चोट न टूटे ।"वह उलट कर चोट भी करेंगे
और तब कांच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को
माथे से लगाना सीखेंगे।
(2)
(क) पाठ और लेखक का नाम बताइए।।
(ख) हीरा वही घन चोट न टूटे- का अर्थ बताइए।।
(ग) किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है?
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हमारी देशभक्ति धूल को माथे से ना लगाए तो कम से कम उस पर पैर तो रखे। किसान के
हाथ- पैर ,मुंह पर छाई हुई यह धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है? हम कांच को प्यार
करते हैं, धूलि भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है, भीतर की कांति आंखों से ओझल रहती है
लेकिन यह हीरे अमर है और हर दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने
अटूट होने का ही प्रमाण दिया है ,"हीरा वही घन चोट न टूटे ।"वह उलट कर चोट भी करेंगे
और तब कांच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को
माथे से लगाना सीखेंगे।
(2)
(क) पाठ और लेखक का नाम बताइए।।
(ख) हीरा वही घन चोट न टूटे- का अर्थ बताइए।।
(ग) किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है?
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mujhe question samaj nahi aaya
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