हमारी देशभक्त धूल को माथे से न लगाए तो कम से कम उस पर पैर तो रखे।
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लेखक का इस वाक्य से आशय है की जिस धूल को वीर योद्धा अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, धूल मस्तक पर लगाते हैं, किसान धूल में ही सन कर काम करता है उस धूल से बचने की कोशिश की जाती है। नगरीय लोग इसे तुच्छ समझते हैं। चाहे वह देश की धूल को माथे से न भी लगाए परंतु उसकी वास्तविकता से परिचित हो।
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लेखक नगर में बसने वालों से कहता है-यदि तुम वास्तव में सच्चे देशभक्त हो तो इस धूल को अपने माथे से लगाओ, अर्थात् आम ग्रामीण व्यक्ति का सम्मान करो। परंतु यदि तुम इतना नहीं कर सकते तो कम-से-कम इनके बीच में रहो। इनसे संपर्क न तोड़ो। इनका तिरस्कार न करो। इनका महत्त्व स्वीकार करो।
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