हमारे वचन कैसे होने चाहिए और क्यों? plz quick answer please
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. हमारी आत्मा के जीवन के लिए
परमेश्वर का वचन आत्मिक भोजन है। यीशु ने कहा कि हम परमेश्वर के वचन से जीवित रहेंगे।
यीशु ने उत्तर दिया : “लिखा है, ‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।’ ”
मत 4:4
क्या लोग बिना खाए जी सकते हैं? नहीं। यदि हम भोजन न खाएं, तो हम समय बीतने पर कमजोर हो जाएंगे और आखिरकार अपना जीवन खो देंगे। हमारी आत्माओं के साथ भी ऐसा ही है। यदि हम आत्मिक भोजन, परमेश्वर का वचन न खाएं, तो हमारे पास आत्मिक शक्ति नहीं हो सकती, हम आत्मिक रूप से कमजोर होंगे, और आखिरकार हम अपना आत्मिक जीवन खो सकते हैं। इसलिए, हमें हमेशा आत्मिक भोजन, परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए।
2. विश्वास में बढ़ने और उद्धार प्राप्त करने के लिए
हम विश्वास के बिना बचाए नहीं जा सकते(रो 1:17)। यदि हम उद्धार पाना चाहते हैं, तो हमें संपूर्ण विश्वास की आवश्यकता है कि हमने नई वाचा के द्वारा अनन्त जीवन प्राप्त किया है, और इस युग के उद्धारकर्ता में भी दृढ़ विश्वास होना चाहिए। तो फिर, हम ऐसा विश्वास कैसे प्राप्त करते हैं? परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के द्वारा। सिर्फ जब हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और उसे महसूस करते हैं, तब हम परमेश्वर में दृढ़ विश्वास रख सकते हैं।
अत: विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है।
रो 10:17
इसलिए, हमें विश्वास में बढ़ने और उद्धार पाने के लिए परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए।
3. हमारे विश्वास को बनाए रखने और सत्य में बने रहने के लिए
चरित्र और व्यवहार में परमेश्वर के सदृश्य होने के लिए परमेश्वर का वचन हम, पापियों की मदद करता है। दूसरी ओर, यदि हम परमेश्वर के वचन से दूर रहते हैं, तो हमारे मन में बुरे विचार आते हैं और हमारा मन भ्रष्ट होता है और आखिरकार हम सत्य को खो देते हैं।
यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है और खरी बातों को, अर्थात् हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है, तो वह अभिमानी हो गया, और कुछ नहीं जानता; वरन् उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिससे डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे-बुरे सन्देह, और उन मनुष्यों में व्यर्थ रगड़े-झगड़े उत्पन्न होते हैं जिनकी बुद्धि बिगड़ गई है, और वे सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति कमाई का द्वार है।
1तीम 6:3-5
इसलिए, हमें अपने विश्वास को बनाए रखने और सत्य में अंत तक बने रहने के लिए परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए। यत्न से परमेश्वर के वचन का अध्ययन करके, आइए हम चरित्र में परमेश्वर के सदृश्य बनें और स्वर्ग के राज्य में लौटें।
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hamare vachan methe shatay or aadarniye hone chahiye jisse hamare andar ki saari buraiya khatam ho jaye
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