हम स्वस्त भारत स्वस्त पर निबंध
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‘तन चंगा तो मन चंगा’ – यह एक बहुत ही पुरानी लोकोक्ति है। अंग्रेजी में भी एक कहावत है जिसका अर्थ है-स्वास्थ्य ही धन है। वास्तव में जिसका स्वास्थ्य अच्छा है, वह भाज्यशाली है। यदि किसी के पास अपार धन है, परंतु वह अस्वस्थ है, तो वह जीवन का आनंद नहीं उठा सकता। इसी प्रकार यदि किसी के पास विद्या है, परंतु वह रोगी है, तो उसका जीवन व्यर्थ है। वास्तव में, स्वास्यि ही जीवन है।
‘पहला सुख नीरोगी काया’। यह लोकोक्ति समीचीन है। काया में कोई रोग नहीं तो हम सुखी है, और यदि रोक है तो दुखी हैं। तभी कहा गया है कि स्वास्यि सुख की कुंजी है।
स्वस्थ रहने की पहली शर्त है ताजा हवा और शुद्ध पानी। हर पल हम सांस लेते और छोड़ते हैं। सांस लेने का मतलब है, हम हवा ग्रहण करते और सांस छोडऩे का मतलब है कि हम अपने शरीद से गंदी हवा बाहर निकालते हैं। आखिर जीवन है क्या? यह सांसों का आना-जाना ही तो जीवन है। गांवों में ताजा हवा मिलती है। परंतु गंदगी के कारण यह दूषित हो जाती है। गांव के चारों और घूरे पड़े रहते हैं। जगह-जगह कूड़े-करकट के ढेर लगे रहते हैं। लोग गांव के आस-पास ही दिशा-पानी के लिए बैठ जाते हैं। इससे गंदगी फैलती है और बदबू के मारे सिर-भन्ना जाता है। कूड़े-करकट और घर के सामने गंदा पानी भरा या फैला रहने के काण मक्खी-मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं। जरा सोचिए ऐसी हालत में कैसे स्वस्थ रहा जा सकता है। यदि गांव को साफ-सुथरा रखा जाए तो वहां के निवासी ताजा हवा के लिए तरसेंगे नहीं और बेहतर स्वास्थ्य लाभ कर सकेंगे।
गांव में पीने के पानी की भरी समस्या है। कच्चे कुंए का पानी हानिकारक होता है। पोखर और तालाबों के पानी से अनेक प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। प्राय: पोखर और तालाब कच्चे होते हैं। पक्के भी हों तो क्या? सारा गांव उन्हीं में नहाता धोता है इससे तालाब का पानी और खराब हो जाता है। जहां पीने के पानी के लाले पड़े रहते हैं। वहां वैसे भी नहाने-धोने का प्रश्न ही नहीं उठता। ठीक तरह से न नहाने से और गंदे कपड़ों को न धोने से अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं। बहुत से लोग तो कपड़े सिलवाने के बाद उन्हें धोने का नाम ही नहीं लेते। फिर निरोगी काया में चंदन-बास की बात कैसे सिद्ध हो?
यह तो हुई गांव की बात। शहर में तो न ताजा हवा है ओर न शुद्ध पानी। धुंए में कार्बन-डाईऑक्साइड एक तरह की गंदी हवा है, जिसे हम बराबर अपने शरीर से छोड़ते रहते हैं। दूसरे शहर घनी आबादी के कारण भी गंदे हो जाते हैं। क्योंकि रोजाना सफाई करने के बावजूद भ्ज्ञी गंदगी के ढेर चारों ओर लगे रहते हैं। सुबह-सुबह आप शहर के गली-कूचों में घूमें तो आपको साक्षात नरक के दर्शन हो जाएंगे।
पानी शहर में नलों से मिलता है, परंतु ठीक तरह साफ न होने के कारण वह शुद्ध नहीं रहता। कहीं-कहीं नदी के पानी को साफ करके
यदि हम स्वस्थ है तो हम एक साधारण भारत के नागरिक भी है। यदि हम अस्वस्थ है तो गरीब, अयोज्य और उपेक्षित भी है। किसी देश, जाति, समाज तथासंप्रदाय की उन्नति तभी संभव है, जबकि वे स्वस्थ और स्फूर्त है। संसार के इतिहास को उठाकर इस बात का अध्ययन करें कि कौन- सा देश कब उन्नतिशील, स्मृद्धिशील, सभ्य और सुसंकृत रहा, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कोई भी देश तभी श्रेष्ठ रहा जबकि उससे नागकि स्वस्थ रहें। विश्व स्वास्थ्य संगठन की विभिन्न रिपोर्टों से भी यह सिद्ध हो रहा है। वास्तव में जीने के उद्देश्य स्वस्थ रहने से है। अस्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वंय दुखी, रोगी और उपेक्षित रहते हैं अपितु वह सारे समाज तथा विश्व के लिए भार हैं। उससे सभी की प्रगति रुक जाती है या उनकी प्रगति में रुकावटें पैदा होती हें। वस्तुतया स्वस्थ व्यक्ति या समाज का जागरुक एंव उपयोगी है।
‘तन चंगा तो मन चंगा’ – यह एक बहुत ही पुरानी लोकोक्ति है। अंग्रेजी में भी एक कहावत है जिसका अर्थ है-स्वास्थ्य ही धन है। वास्तव में जिसका स्वास्थ्य अच्छा है, वह भाज्यशाली है। यदि किसी के पास अपार धन है, परंतु वह अस्वस्थ है, तो वह जीवन का आनंद नहीं उठा सकता। इसी प्रकार यदि किसी के पास विद्या है, परंतु वह रोगी है, तो उसका जीवन व्यर्थ है। वास्तव में, स्वास्यि ही जीवन है।
‘पहला सुख नीरोगी काया’। यह लोकोक्ति समीचीन है। काया में कोई रोग नहीं तो हम सुखी है, और यदि रोक है तो दुखी हैं। तभी कहा गया है कि स्वास्यि सुख की कुंजी है।
स्वस्थ रहने की पहली शर्त है ताजा हवा और शुद्ध पानी। हर पल हम सांस लेते और छोड़ते हैं। सांस लेने का मतलब है, हम हवा ग्रहण करते और सांस छोडऩे का मतलब है कि हम अपने शरीद से गंदी हवा बाहर निकालते हैं। आखिर जीवन है क्या? यह सांसों का आना-जाना ही तो जीवन है। गांवों में ताजा हवा मिलती है। परंतु गंदगी के कारण यह दूषित हो जाती है। गांव के चारों और घूरे पड़े रहते हैं। जगह-जगह कूड़े-करकट के ढेर लगे रहते हैं। लोग गांव के आस-पास ही दिशा-पानी के लिए बैठ जाते हैं। इससे गंदगी फैलती है और बदबू के मारे सिर-भन्ना जाता है। कूड़े-करकट और घर के सामने गंदा पानी भरा या फैला रहने के काण मक्खी-मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं। जरा सोचिए ऐसी हालत में कैसे स्वस्थ रहा जा सकता है। यदि गांव को साफ-सुथरा रखा जाए तो वहां के निवासी ताजा हवा के लिए तरसेंगे नहीं और बेहतर स्वास्थ्य लाभ कर सकेंगे।
गांव में पीने के पानी की भरी समस्या है। कच्चे कुंए का पानी हानिकारक होता है। पोखर और तालाबों के पानी से अनेक प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। प्राय: पोखर और तालाब कच्चे होते हैं। पक्के भी हों तो क्या? सारा गांव उन्हीं में नहाता धोता है इससे तालाब का पानी और खराब हो जाता है। जहां पीने के पानी के लाले पड़े रहते हैं। वहां वैसे भी नहाने-धोने का प्रश्न ही नहीं उठता। ठीक तरह से न नहाने से और गंदे कपड़ों को न धोने से अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं। बहुत से लोग तो कपड़े सिलवाने के बाद उन्हें धोने का नाम ही नहीं लेते। फिर निरोगी काया में चंदन-बास की बात कैसे सिद्ध हो?
यह तो हुई गांव की बात। शहर में तो न ताजा हवा है ओर न शुद्ध पानी। धुंए में कार्बन-डाईऑक्साइड एक तरह की गंदी हवा है, जिसे हम बराबर अपने शरीर से छोड़ते रहते हैं। दूसरे शहर घनी आबादी के कारण भी गंदे हो जाते हैं। क्योंकि रोजाना सफाई करने के बावजूद भ्ज्ञी गंदगी के ढेर चारों ओर लगे रहते हैं। सुबह-सुबह आप शहर के गली-कूचों में घूमें तो आपको साक्षात नरक के दर्शन हो जाएंगे।
पानी शहर में नलों से मिलता है, परंतु ठीक तरह साफ न होने के कारण वह शुद्ध नहीं रहता। कहीं-कहीं नदी के पानी को साफ करके नलों द्वारा जनता तक पहुंचाया जाता है। परंतु नदियों का पानी इतना दूषित हो गया है कि उसे ठीक से साफ करना वाटर-वक्र्स द्वारा संभव नहीं रहा है। शहर की सारी गंदगी समेटकर नाले-नदी में गिरते हैं। कल-कारखानों में इस्तेमाल करके जो पानी छोड़ा जाता है, वह न केवल दूषित होता है, विषैला भी होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ समय बाद शहर का अर्थ होगा, मौत का घर।
कहने का तात्पर्य यह है कि गांव हो या शहर, हवा और पानी दोनों ही दूषित हो गए हैं। इसका जन-जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है और व्यक्ति की शक्ति कम होती जा रही है। शक्तिहीन रोगी इंसानों का देश कैसे खुशहाल और सुख से रह सकता है? क्या ऐसा धरती का स्वर्ग हो सकता है?
केवल यही नहीं कि हवा और पानी दूषित होने से ही जनजीवन नरक बना हो, उसके और भी अनेक कारण हैं। सफाई रखना तो सभी का फर्ज है। साथ ही संतुलित भोजन पर जोर दें। बाजार की तली व खुली चीजें न खांए। कटी सब्जी या फल न ले। रोज एक ही तरह का भोजन न करें। वैसा करने से भोजन पचाने वाला रस कम बनता है। इसलिए दाल, दलिया, हरी सब्जियां, फल, दूध-दही, मक्खन, छाछ, चीनी आदि का अदल-बदल कर प्रयोग करें। मौसम के फल जरूर खांए। वे न केवल तब सस्ते होते हैं, गुणकारी भी होते हैं। बच्चों के लिए खेलना सबसे उत्तम व्यायाम है। खेलने से शरीर बढ़ता है। हड्डियां मजबूत होती हैं, भूख बढ़ती है, भोजन पचता है और मन प्रसन्न रहता है। काम में रुचि पैदा होती है। पढ़ाई में मन लगता है। अच्छी नींद आती है। थकान और सुस्ती कभी पास नहीं फटकती। शरीर में हरदम फूर्ती बनी रहती है। मन प्रफुल्ल रहता है और सदा उत्साह बना रहता है। सारा संसार खुश और महकता नजर आता है। अच्छे काम करने से भी मन स्वस्थ रहता है। बुरे काम करने से मन भी दुखी रहता है।
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