हम सब पथ के राही हैं। चलते चले जाते हैं-कुछ पथ छोटे और कुछ बड़े-ऊँचे और नीचे भी, ऊबड़-खाबड़ भी, लेकिन चलने
से रुक नहीं पाते। एक साहसी वीर की तरह चले जाते हैं। अरे। यह क्या ? कोई हम पर पत्थर फेंक रहा है, कुछ ऐसे हैं जो
उसको देखते भी नहीं। चैतन्य की तरह, अपने में मस्त, हरे कृष्ण हरे राम की ध्वनि उनमें रमी रहती है। चोट का अनुभव
होता ही नहीं। जीवन इतनी गहराइयों में उतर जाता है-बाहर की अवस्था का भास नहीं होता। सोची, यह भी तो जीवन है !
दूसरे वे हैं जो हल्की सी चोट को सह नहीं पाते, बौखला जाते हैं। अगर इन चोटों को पुष्पवर्षा की तरह अनुभव करें तो
जीवन दूसरा रस लेने लगेगा।
1.गदयांश में जीवन को क्या माना गया है?
2.चेतन्य की तरह रहने वाले को क्या अनुभव नहीं होता?
3. गंदधांश में किसकी भाँति रहने का संदेश दिया गया है?
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2.chot ka anubhav nahi hota. 3.chaitanya ki bhati.
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