हम सवालों पैदा करते हैं. जो समय और ऋतुओं का दर्पन दमकते हुए हीरो की तरह काट देते हैं ! '' सवालात दमकते हुए हीरे की तरह है जो हमारे जीवनरूपी दर्पण के सुख-चैन ओर सौदर्यबोध को काट देते हैं | सवालातो के समाधान में हम उलझ जाते हैं और सदैव उलझे रहते हैं कभी सुख की सास नही ले पाते | अवतरणो की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: एकांकी नाटक तांबे के कीडे़ से लिया गया हैं
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संदर्भ — ये पंक्तियां ‘भुवनेश्वर’ द्वारा रचित एकांकी “तांबे के कीड़े” से ली गई हैं। भुवनेश्वर हिंदी के प्रसिद्ध एकांकीकार लेखक और कवि रहे हैं। अपने एकांकियों के माध्यम से उन्होंने मध्यमवर्ग की दैनिक विसंगतियों को यह कड़वे सच के प्रतीक के रूप में उभारा है।
भावार्थ — एकांकी का एक पात्र कहता है कि हम हम समाज में ऐसे सवाल उठाते है, जो समय के अनुसार प्रासंगिक होते हैंष वे बेहद तीखे होते हैं जो किसी को भी चुभ सकते हैं। हमारे सवाल ऐसे होते हैं, जो कभी किसी ने सोचे नहीं हुए होते, जो जमीन से जुड़े हुए होते हैं, और जीवन की विसंगतियों को प्रकट करते हैं। ऐसे सवाल चुभते तो हैं, और अंदर तक असर करते हैं। लेकिन हम अक्सर इन सवालों के समाधान में ही उलझ जाते हैं, और अपने जीवन की सुख-शांति तक खो देते हैं।
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