Hindi, asked by sakshisen979, 5 months ago

हम तौ एक एक करि जाना।
दोड कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां ।।
एकै पवन एक ही पानी एकै जोति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै कोहरा सांना।।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
माया देखि के जगत लुभांना काहे रे नर गरबांना।
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवाना।। ( explain this lines)​

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Answered by bhatiamona
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प्रसंग: यह प्रस्तुत पंक्तियाँ कबीर जो द्वारा लिखी है| कबीर जी पंक्तियों के माध्यम से बताना चाहते है कि ईश्वर हर कण-कण में बसता है| वह ईश्वर को एक मानते है|

व्याख्या: कबीर जी कहते है कि हम तो एक ही ईश्वर में विश्वास रखते है| आत्मा भी परमात्मा का रूप होती है| जो लोग ईश्वर का नाम लेकर ईश्वर को अलग-अलग करते है वह उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता और सच्चाई को नहीं पहचान पाते।  

कबीर जी एक उदाहरण देखर समझाते है जिस प्रकार हवा एक ही है , और पानी भी एक ही है, सब एक ही प्रकाश में समाया हुआ है|

जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाता है , वह तरह-तरह के बर्तन बनाता है | वह बर्तनों को आकर अलग-अलग तरीकों से देता है| इसी प्रकार ईश्वर ने भी हमें अलग-अलग रूप में बनाया है|  

लकड़ी काटने वाला लकड़ी काटता है और अग्नि को कोई नहीं काट सकता , उसकी प्रकार हमारा शरीर नष्ट हो सकता है लेकिन हमारी आत्मा कोई अलग नहीं कर सकता है| ईश्वर आप कोई भी रूप धारण कर लो ,सब जगह ईश्वर आप ही हो| सारा संसार माया में फसा हुआ है|  यही संसार को लुभाता है| कबीर  जी कहते है कि मनुष्य को कभी भी घमण्ड नहीं करना चाहिए|

अंत में कहते है जब मनुष्य निर्भय हो जाता है , तब संसार की कोई भी चीज उसे नहीं सता सकती| कबीर जी ईश्वर के दीवाने हो गए है| वह अब निर्भय हो गए है|

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