हम दिग्भ्रमित क्यों और कैसे हो रहे हैं
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लेखक के अनुसार उपभोग का भोग करना ही सुख है। अर्थात् जीवन को सुखी बनाने वाले उत्पाद का ज़रूरत के अनुसार भोग करना ही जीवन का सुख है।
PLEASE MARK ME AS A BRAINLEAST.
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अपनी संस्कृति के क्षीण होने के कारण
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