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हममें विवेक जागे, हम धर्म को न छोड़ें।
बन्धन कुरीतियों के हम एक एक तोड़ें।।
व्रत ब्रम्हचर्य कम से
मन और देह दोनों की शक्तियाँ कमा लें।।
निर्बल न हों कभी हम, किन हो पतन हमारा।। छूटे. ।।2।।
कम बीस वर्ष पालें।
मरना अगर पड़ें तो मर जायें हम खुशी से।
निज देश के लिए पर छूटे लगन न जी से।।
पर संकटों में चाहे बन जायें हम भिखारी।
सिर पर मुसीबतें ही आ जायें क्यों न सारी।।
हिम्मत कभी न हारें, विचले न मन हमारा।। छूटे. ।। 3 ।।
सुन वीरता हमारी कँप जाये दुष्ट सारे।
कोई न न्याय छोड़ें आतंक से हमारे।।
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में।
हो रक्त बूंद भर भी जब तक हमारे तन में।।
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।। छूटे. ।।4।।
वह शक्ति दो जग को अपना बना सकें हम।
वह शक्ति दो कि तुमको फिर से बुला सकें हम।
सुख में तुम्हें न भूलें, दुःख में न हार मानें।
कर्तव्य से न चूकें, तुमको परे न जानें।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा ।। छूटे. ।।5।
इस कविता के माध्यम से कवी ने हमें क्या संदेश दिया है
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कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।। छूटे. ।।4।।
वह शक्ति दो जग को अपना बना सकें हम।
वह शक्ति दो कि तुमको फिर से बुला सकें हम।
सुख में तुम्हें न भूलें, दुःख में न हार मानें।
कर्तव्य से न चूकें, तुमको परे न जानें।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा ।। छूटे. ।।5।
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