Hindi, asked by aryannara32291, 1 year ago

Hamara gorakshali attit aur adhunikta ka avAran audhe hamara vartman ,visay par do mitro ke batchit liekhe ....... samvaf lekhan .... plz answer me

Answers

Answered by Anonymous
17

हम आए दिन विदेशियों के कुत्सित प्रचार और मीडिया के पाखंडपर्ण रवैये की वजह से अपने गौरवशाली अतीत को कोसते रहते हैं। हमारी मानसिकता ही ऐसी बनादी गई है कि भारत का अतीत यानि हमारे लिए शर्म का विषय। जबकि हकीकत ये है कि भारत का अतीत जितना समृध्द और गौरवशाली रहा है वहाँ तक पहुँचने के बारे में दुनिया का कोई देश सोच भी नहीं सकता है। राष्ट्रवादी चिंतक और भारतीय गौरव और स्वाभिमान के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले स्वर्गीय राजीव दीक्षित ने अपने शोधपूर्ण व्याख्यानों में भारत के स्वर्णिम अतीत को सप्रमाण प्रस्तुत किया है- प्रस्तुत है उनके व्याख्यानों का ये अंश।

पूर्णतः दोषी आप नहीं है, संपन्नता एवं उन्नति रूपी प्रकाश हेतु हम पूर्व की ओर ताकते है किंतु सूर्य हमारी पीठ की ओर से निकलता है। देशकाल की दृष्टि से कहूँ तो मात्र १९०-२४० वर्ष पूर्व का भारत, दूसरे शब्दों में, मनुष्य की औसत आयु ६० वर्ष भी मान ले तो मात्र ३-४ पीढ़ी पूर्व। दो सौ से भी अधिक विद्वान इतिहासकारों ने, शोधकर्ताओं ने जब “सोने की चिड़िया” (वर्तमान भारतियों में भारत के इतिहास के नाम पर शेष) पर शोध कर जो शोधपत्र, पुस्तके आदि लिखी उसके कुछ अंश आपसे साझा कर रहा हूँ।

Answered by beenadhailabisht
6

Answer:

किसी देश की वास्तविकता जानना हो तो उस देश के महापुरुषों का अध्ययन करने से हमें उस सच का पता चलता है, जो उस देश की मूल अवधारणा में समाहित होता है। लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत के परम भक्त महाराणा प्रताप पर हमला करने वाले विदेशी आक्रमणकारी मुगल शासक अकबर को महान बताने की भूल की जाती है, इसी प्रकार हम सबके आराध्य भगवान श्रीराम की पावन भूमि को तहस नहस करने का साहस करने वाले बाबर का इस देश में सम्मान किया जाता है। विश्व के अनेक देशों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद अपने पुराने स्वर्णिम रूप को फिर से ज़िंदा करके उसे राष्ट्रीय गौरव के रूप में मान्यता दी, लेकिन हमारे भारत में क्या हो रहा है, हम और हमारे देश के नीति निर्धारक माने जाने वाले नेता पश्चिम की धारा का अनुशरण करके नीतियां बनाने लगे. हम जानते हैं कि जो देश अपने पूर्वजों द्वारा बनाई राह से लज्जित होने लगे उस देश को समाप्त होने से दुनिया की कोइ ताकत नहीं रोक सकती. हम याद रखना होगा कि हमारा अतीत अत्यंत गौरवशाली है, उसी गौरव शाली राह पर चलकर ही हम पुनः विश्व गुरू के सिंहासन पर पदासीन हो सकते हैं.

वास्तव में यह सत्य है कि वर्तमान में हम जो इतिहास पढ़ते हैं, वह भारत का इतिहास है ही नहीं। भारत के सच्चे इतिहास की जानकारी के लिए हमको अंग्रेजों और मुगलों के शासन से पूर्व की जानकारी प्राप्त करनी होगी, क्योंकि वास्तविकता में वही भारत का इतिहास है। उस काल में हमारा भारत देश इतना समृद्ध था कि सारे देश भारत से कुछ न कुछ सीखने की मंशा रखते थे। भारत पूरी तरह से हिन्दू राष्ट्र ही था। हिन्दू जीवन पद्धति को अंगीकार करने वाली यहां की संतति के पास विश्व को दिशा देने वाला ज्ञान विद्यमान था। यह बात अंग्रेज और मुगलों को अच्छी नहीं लगती थी। उन्होंने भारत को समाप्त करने के बारे में कई तरह के प्रयास किए, लेकिन अनेक बार उनके प्रयास असफल साबित हुए। परंतु ये विदेशी हमलावर एक चीज में जरूर सफल हो गए कि उन्होंने भारत के उन स्वर्णिम दस्तावेजों को ही नष्ट कर दिया, जिनके कारण भारत वैश्विक महाशक्ति के रूप में जाना जाता था। मुगल कालीन शासकों ने जहां आस्था केन्द्रों पर हमला करके उन्हें क्षतिग्रस्त किया, वहीं अंग्रेजों ने मानसिक गुलामी में जीने के लिए रास्ता तैयार किया। हम जानते हैं कि आज देश में जितने कानून और नियम चल रहे हैं, वे सभी अंग्रेजों के शासन काल के ही हैं। आज इन नियम कानूनों को पूरी तरह से बदलने की कार्यवाही की जानी चाहिए, क्यांकि हमें यह बात समझनी ही होगी कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नियम भारत का भला कभी नहीं कर सकते।

भारत के बुद्धि कौशल के बारे में तो आज भी विश्व के अनेक देश चकित हैं। दुनिया का सबसे विकसित देश अमेरिका खुद भी इस बात को स्वीकार करता है कि अमेरिका में आज जो भी प्रगति दिखाई दे रही है, उसमें भारत की प्रतिभा का पूरा योगदान है। अमेरिका में हर क्षेत्र चाहे वह चिकित्सा के क्षेत्र में हो या वैज्ञानिक या फिर तकनीकी क्षेत्र ही क्यों न हो, हर क्षेत्र में भारत वंशियों का खासा दबदबा है। इी प्रकार विश्व के कई देश आज भी भारत की प्रतिभा के कायल हैं। इससे यह तो प्रमाणित हो ही जाता है कि बुद्धि के मामले में भारत आज भी विश्व के कई देशों से आगे है। वर्तमान में भारत का जो इतिहास पढऩे को मिलता है वह गुलामी का इतिहास ही है, क्योंकि यह सत्य है कि गुलामी के समय में वही बात इतिहास बन जाती जो उस समय का शासक चाहता है। इसके अलावा गुलामी के बाद का अतिहास भी भारत का इतिहास नहीं माना जा सकता, क्योंकि गुलामी के बाद देश में मुसलमानों प्रति तुष्टीकरण का खेल प्रारंभ हो गया था।

इतिहास की सच्चाई को झुठलाने से हम उन प्रेरणा पुंजों को भी संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। विडंबना यह रही कि हमारे गौरवशाली अतीत के बारे में सही जानकारी के पृष्ठ गायब कर दिए गए। विदेशी हमलावर चाहे अंग्रेज हों या मुगल, पठान हो, इन्होंने भारतीय संस्कृति और आस्था के स्थानों को नष्ट भ्रष्ट करने की कोशिश इसलिए की कि यदि हिन्दुओं की भावी पीढ़ी को सही इतिहास पढ़ाया गया तो उनके अंदर गौरव के भाव की चेतना जाग्रत होगी और इस भाव भूमि में देशभक्ति का प्रवाह तेज होगा। इससे क्रांति की स्थिति पैदा होकर भारत की युवा पीढ़ी गुलामी की जंजीरों को तोड़ देगी। अंग्रेज और विदेशी हमलावर मुगल पठानों की कार्रवाई में अंतर यह है कि मुस्लिम हमलावर मानबिंदुओं एवं श्रद्धा स्थानों को नष्ट करके यह मान लेते थे कि इससे भारत के राष्ट्रीय समाज अर्थात हिन्दू समाज का मनोबल टूटेगा। दूसरी ओर अंग्रेजों ने न्यायालयीन प्रक्रिया की नौटंकी करने के साथ इतिहास के गौरवशाली पन्नों को नष्ट करने की कोशिश की, जिससे भावी पीढ़ी में अपने अतीत के प्रति हीन भावना पैदा हो। गलत इतिहास पढ़ाने का बुरा प्रभाव यह हुआ कि नई पीढ़ी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षण पैदा हुआ और अपने स्वयं के प्रति हीन भावना पैदा हुई। हजार वर्ष से अधिक की गुलामी के कारण हमें अपने स्वयं के प्रति हीन भावना पैदा हुई। दुर्भाग्य यह रहा कि भारत के राजनैतिक नेतृत्व में भी इतिहास को राजनैतिक चश्मे से देखा। करीब पांच दशक तक भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस ने यह बताने की कोशिश की कि एक-दो नेताओं के कारण ही देश को आजादी मिली। राष्ट्रवादी नीतियों के प्रभाव में कमी आई और दलगत स्वार्थ के कारण वोटों पर राजनीति केंद्रित हो गई। दुर्भाग्य यह रहा कि हमारे अपनों ने भी उसी प्रकार की नीति अपनाई। अब भी हम इस सवाल से जूझ रहे हैं कि नेताजी सुभाष की मृत्यु की सच्चाई क्या है? उनके परिवार की जासूसी क्यों की गई? अब तो हालत यह है कि प्रेस कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू भी इतिहास की सच्चाई को विवाद में घसीटते हैं।

Similar questions