Hamare hari haril ki lakri ko pardkar apko kis jivan satya ka bodh hota hai?
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– इद पंक्तियों में गोपिकाएं उद्वव से कहती हैं कि तुम बहुत ही भाग्यशाली हो। व्यंग्य करती हैं तुम कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम और स्नेह से वंचित हो। तुम कमल के पत्ते के समान हो जो रहता तो जल के भीतर है पर फिर भी जल से अछूता रहता है (डूबा नहीं होता)। जिस तरह गागर को पानी में डूबोया जाता है (तेल लगे होने पर) उसी तरह आप भी निर्गुण ब्रह्म रूपी तेल के कारण कृष्ण के प्रेम में डूबे हुए नहीं हो। तुमने कभी प्रीति रूपी नदी में पैर नहीं डुबोए अर्थात् प्रेम का स्पर्श नहीं लिया। तुम कैसे व्यक्ति हो, जो कि कृष्ण के रूप सौंदर्य पर भी मुग्ध (मोहित नहीं हुए)। तुम तो बहुत विद्वान हो, निर्गुण भ्रम को मानने वाले हो, इसलिए कृष्ण के प्रेम में नही रंगे (सौंदर्य पर मुग्ध न हुए), लेकिन हम तो भोली-भाली गोपिकाएँ हैं। हम तो उनके प्रेम में इतने लीन है जैसे गुड़ में चीटियाँ चिपकी होती हैं।