Hindi, asked by prachusharajana, 1 year ago

hamare prakritik mitr par anuched

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Answered by karthik9122002
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मनुष्य   प्रकृति की गोद में  पलता  बढ़ता   है ,प्रकृति  एक  मां  के  समान  अपने  बच्चे  या   कहा जाये  मानव   की   हर  जरुरत  पुरी  करती   है ,लेकिन  किसी  मुसीबत  में  पड़ने  पर  या अचानक  कोई  परेशानी  आ  जाने  पर  हम   अपनी   प्रकृति  मां  की शरण  में  जाने  के  स्थान  पर  बाहर की  दुनिया  में  बनावटी  साधनों  में  अपनी  समस्या  का  समाधान  ढूंढने लगते  हैं सच तो ये है कि प्रकृति हमारी हर  जरुरत को पूरा कर  सकती  है . ,चाहे  वह  रोटी कपडे  मकान  की  हो  रोजगार  की  हो  या  चिकित्सा  की .हम  प्रकृति  के  बीच  रहते  हुए   उसके  सहज  प्रवाह  को  आगे  बढ़ाते  हुए  उसके  संरक्षण  में  स्वयं  अपना  भी   विकास  समुचित  रूप  से  कर  सकते  हैं .लेकिन  हम  prakriti  से  प्राप्त  साधनों  का  आवश्यकता   से  अधिक  दोहन  कर  के बहुत बड़ी मुर्खता कर रहे हैं  वैसे  ही   जैसे  कोई  मुर्ख  अक्षय  पात्र ,जिससे  जब  जितना  chahe  भोजन  प्राप्त  कर  सकता  था ,उस  पात्र  ko  ही  फोड़  कर  एक   साथ  सब  कुछ  पाना   चाहता है.प्रकृति के साथ मित्रता कर प्राचीनं समय में कुछ विद्याएँ अर्जित की गयी थीं जिनमें ज्योतिष वास्तु प्राकृतिक चिकित्सा ,acupressior ,आदि का प्रमुख   स्थान है अपनी इन प्राचीन विद्याओं के बारे में चर्चा करना और अपने समाज को जागरूक करना मेरी इच्छा है इस बारे में मैं आगे भी आप लोगों से चर्चा करते रहना चाहूंगी.अब विदा चाहूंगी नमस्कार.
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