hamare prakritik mitr par anuched
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मनुष्य प्रकृति की गोद में पलता बढ़ता है ,प्रकृति
एक मां के समान अपने बच्चे या कहा जाये मानव की
हर जरुरत पुरी करती है ,लेकिन किसी मुसीबत में पड़ने पर या
अचानक कोई परेशानी आ जाने पर हम अपनी प्रकृति मां की शरण में
जाने के स्थान पर बाहर की दुनिया में बनावटी साधनों में
अपनी समस्या का समाधान ढूंढने लगते हैं सच तो ये है कि प्रकृति
हमारी हर जरुरत को पूरा कर सकती है . ,चाहे वह रोटी कपडे मकान की
हो रोजगार की हो या चिकित्सा की .हम प्रकृति के बीच रहते हुए
उसके सहज प्रवाह को आगे बढ़ाते हुए उसके संरक्षण में
स्वयं अपना भी विकास समुचित रूप से कर सकते हैं .लेकिन हम
prakriti से प्राप्त साधनों का आवश्यकता से अधिक दोहन कर के
बहुत बड़ी मुर्खता कर रहे हैं वैसे ही जैसे कोई मुर्ख अक्षय पात्र
,जिससे जब जितना chahe भोजन प्राप्त कर सकता था ,उस पात्र ko ही
फोड़ कर एक साथ सब कुछ पाना चाहता है.प्रकृति के साथ मित्रता कर
प्राचीनं समय में कुछ विद्याएँ अर्जित की
गयी थीं जिनमें ज्योतिष वास्तु प्राकृतिक चिकित्सा ,acupressior ,आदि का
प्रमुख स्थान है अपनी इन प्राचीन विद्याओं के बारे में चर्चा करना और
अपने समाज को जागरूक करना मेरी इच्छा है इस बारे में मैं आगे भी आप लोगों
से चर्चा करते रहना चाहूंगी.अब विदा चाहूंगी नमस्कार.
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