hamari grah prithvi ko sabse bada khatra os mansikta se ha ki koi aur ise acha lega
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अगर हम इस बात के बारे में सोचते हैं , इसका मतलब है कि पिचले दो तीन सदियों में हम लोगों ने हमारी प्यारी धरती को कुछ न कुछ तरीके से बर्बाद करदिया है | इसका कारण यह हो सकता है की, कोई कंट्रोल - नियंत्रता नहीं था, या तो तकनीकी ज्ञान नहीं था या तो कोई इसके बारे में सोचा ही नहीं था | अब यह वक्त आगया है कि हम सब लोग "धरती माँ को बचाने की बात" पर ध्यान दें और यह भी देखें कि कौन लोग और किस तरह से धरती को बर्बाद कर रहे हैं |
अगर हम इस धरती पर रहते हैं, तो यही सही है कि हम ही उसे बचाएं | कोई दूसरा है ही नहीं, जो हमारी इस धरती को बचाएगा | अगर हम सोचते हैं की हम इसे गन्दा करेंगे, प्रदुषण फैलायेंगे और कोई दूसरा है जो प्रदूषण हटाएगा, गन्दगी निकलेगा तो यह मानसिक रोग है, और दुराशा है | सदियों के हमारे कर्मों से समुन्दरों में निवास मछलियाँ और दूसरे जंतु मर रहे हैं | कुछ पक्षी जात भी ख़तम होगया है | हिमालय और दूसरे हिम पर्वत भी घटने लगे हैं | हिम बहाने लगा है समुन्दर में धीरे धीरे और समुन्दर धरती पर बहकर आसपास के गाओं को दुबारहा है | गरमी बढ़ गयी है | और बढ़ते ही जा रहा है |
बहुत
सारे उद्योग खेतों को पेड़ोंको काटते हैं, नदियों में सागरों में
केमिकल मिलाकर प्रदूषण करते हैं | और सामान्य प्रजा को पूरा
ज्ञान न होने के कारण वे ऐसे काम करते हैं कि उन से प्रदूषण फैलता है |
बहुत
लोग गरीब होने के वजह से वे अपने घरों में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी (पेड़ों से काट
कर) इस्तेमाल करते हैं | उसे
जलाते हैं | इससे
हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड कार्बोन डाइऑक्साइड मिल जाते हैं |
नदियों
में कपडे साबुन के साथ धोते हैं | इस से साबुन के खराब
केमिकल पीने के पानी में मिल जाते हैं |
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पृथ्वी
को इस मानसिकता से बहुत बड़ा खतरा है | क्योकि आखिर कोई ठीक काम
नहीं करेगा और सब लोग पर्यावरण , पानी , हवा सब चीजों को बर्बाद कर देंगे |
इस
सोच से हम लोगों को निकलना है | इसी लिए कुछ
व्यवस्थाएं लोगों के सोच को बदलने की कोशिश करते हैं | बच्चों को स्कूल में
कालेज में पढ़ाई के रूप में सारे विषय पढ़ाते हैं |
पृथ्वी को खतरा है तो अनु संबंधी खचरा से, ग्रीनहाउस गासों से , पेट्रोल जलानेसे निकलते हुए धूप से, केमिकल जो जहर होते है अगर पीने के पानी में मिलाये तो, अगर हम वन, वृक्ष नाश करें तो, कुछ खराब खाद जो खेतों में फसल ज्यादा होने के लिए डालते हैं - उनसे, और प्लास्टिक थैलियोसे जो पानी को ख़राब करते हैं और खाने की चीजों को भी ख़राब करते हैं | और भी है जैसे कि इलेक्ट्रोनिक खचरा (इ-वेस्ट) |
कुछ सालों से उद्योगपति भी बदल रहे हैं | नयी नयी गाडियां जो प्रदूषण नहीं करते हैं बनाने लगे हैं | और आजकल सोलार परिकरण, वाहन, सोलार विद्य्क्ति (बिजली) के उपकरण भी बन रहे हैं | भारत में तो बदलाव आने लगा है | लेकिन कुछ आफ्रीका के कुछ जगहों में अभी भी कुछ पुराने आदत और प्राक्टीस चल रहे हैं | इनको बदलना है |
नयी सोच आने मैं और दुनिया के सारे लोगों में बदलाव आने में बहुत लम्बा समय तो लगेगा | क्योंकि इसके लिए पैसे तो बहुत ज्यादा लगेगा और नए तकनीकी की आवश्यकता होगी | हम आजकल तो "पृथ्वी दिन" (Earth Day) मनाते हैं | स्कूलों में प्रत्योगिताओं का निर्वहण करते हैं | दुनिया के कुछ सरकार मिलकर पर्यावरण और जंतु जाल के आरक्षण के लिए कुछ नियम, दिशा-निर्देश भी बनाएं हैं | धीरे धीरे यह सब लागू होंगे |