Hindi, asked by shalinigselokar, 1 year ago

Hamari Parampara Mahima mai hai Vishay par Apne vichar likhiye​

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Answered by khushi23735
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In our India we people will live with a great peace. in our India there are so many kind/cast people will live but we will live with peace. we celebrate all functions life Ganesh chatruti, Christmas, bakari ID etc that's why ha mari parampara mahima mai hai

Answered by kirtisingh01
7

Answer:

Explanation:

आधुनिकता की समझ के लिए परंपरा का ज्ञान होना उतना ही जरूरी है, जितना किसी प्यासे व्यक्ति के लिए पानी। जबकि ‘परंपरा का सिर्फ ज्ञान रखना परंपरावादी होना नहीं है’ तो आधुनिकता की संपूर्णता को परंपरा से अलग रख कर देखना कहां तक संभव है! कोई प्रक्रिया कड़े और लगातार प्रयोगों से गुजरने के बाद परंपरा का रूप ले पाती है तो वह संगत परिवर्तन की गुंजाइश भी साथ लेकर चलती है। समय सापेक्ष उसके मूल्यांकन के अभाव में अगर कोई परंपरा जड़ हो जाए तो वह अपने किसी भी रूप में परंपरा नहीं रहती, प्रथा या रूढ़ि बन जाती है।

साहित्य की विशाल परंपरा में ऐतिहासिक चेतना के सहारे किसी कृति के कालजीवी और कालजयी होने के फर्क को समझा जा सकता है। वहां कालजीवी रचना किसी समय विशेष में गंभीर योगदान देते हुए प्रासंगिक होती है, वहीं कालजयी कृति अपने युग से इतर दूसरे युग में अतिक्रमण करती है। फिर भी साहित्य के लिए दोनों का अपना महत्त्व है। आधुनिक संदर्भों में भक्तिकाल का काव्य और कवि साहित्य की परंपरा में कितने आधुनिक हैं? यह किसी से छिपा नहीं है। फिर भी तत्कालीन समाज जिन समस्याओं से जूझ रहा था, क्या आज हजार साल बाद भी समाज में वे समस्याएं किसी न किसी रूप में बनी हुई हैं?

परिवर्तन की प्रक्रिया परंपरा का ही हिस्सा है जो कि नवीनता को जन्म देती है, क्योंकि नवीनता की शुरुआत शून्य से नहीं हो सकती। परिवर्तन की प्रक्रिया द्वारा किसी परंपरा के आधुनिक रूप लेने में निरंतरता रूपी कड़ी का विशेष महत्त्व है। तभी ‘परंपरा से हमें समूचा अतीत नहीं प्राप्त होता, बल्कि उसका निरंतर बिखरता छंटता बदलता रूप प्राप्त होता है, जिसके आधार पर हम आगे की जीवन पद्धति को रूप देते हैं।’ परिवर्तन और निरंतरता परंपरा को मांजते हैं, जिससे परंपरा अपनी अर्थवत्ता को बनाए रखती है और अपने वास्तविक संदर्भों में आधुनिकता के गुणों को समाहित कर आगे बढ़ती है।

किसी भी परंपरा की तार्किक प्रवृत्ति उसे जीवंत बनाए रखने में मदद करती है। अन्यथा परंपरा को सूख कर जड़ होने में समय नहीं लगता। साहित्य की बेहतर जांच या परख के लिए ‘पाने-पेचकस’ परंपरा से ही आते हैं। इसके बाद आलोचना जिन मूल्यों का सृजन करती है, परंपरा उन मूल्यों की वाहक बनती है और पीढ़ी दर पीढ़ी मूल्यों का हस्तांतरण करती चलती है।

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