Hindi, asked by raman7312, 9 months ago

hamari vaan Samprada sayam hi sadachar hai essay in hindi​

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Answered by hiteshsharma25031981
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वनों के ह्रास से पर्यावरण असंतुलित होने लगता है। हवा, पानी और मिट्टी जो वन पर आधारित है, उन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वनस्पति की अवैध कटाई, अवैध शिकार, अवैध चराई, अग्निकाण्ड, अम्लीय वर्षा, ओजोन ह्रास, ध्वनि प्रदूषण, अनावृष्टि, नये-नये आविष्कारों का जन्म आदि वन सम्पदा के ह्रास के लिये मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं।वन सम्पदा हमारी भारतीय सभ्यता और प्राचीन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। वन सम्पदा वातावरण में उपलब्ध धुआँ, धूलकण, कार्बन, सीसा, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड एवं मानव जीवन को प्रदूषित करने वाली गैसों को घटाकर जीवन को सुरक्षा प्रदान करते हैं। वन सम्पदा भूमि को अपनी जड़ों द्वारा जकड़कर हवा और वर्षा की तेजधार से बचाकर मिट्टी के कटाव की सुरक्षा प्रदान करती हैं। इनकी पत्तियाँ, टहनियाँ और फल-फूल धरती पर झड़कर सड़ते हैं, इससे धरती अधिक उपजाऊ बनती है। भारतीय कृषि की अधिकांश सफलता वर्षा/मौसम पर निर्भर करती है। वर्षा वनों पर निर्भर करती है, इसलिए भारतीय कृषि वन सम्पदा पर पूर्णतया निर्भर है।

वनस्पति जगत से भवन निर्माण सामग्री उपलब्ध होती है। वनों से औषधियाँ उपलब्ध होती हैं। वृक्षों से छाल, फल-फूल पत्ते और जड़ें ही नहीं, बल्कि अनेक प्रकार की जड़ी बूटियाँ भी वनों से प्राप्त होती हैं। आज देश की लगभग 16 प्रतिशत भूमि ही वनाच्छादित है। जबकि कम-से-कम 33 प्रतिशत भूमि में वन होना आवश्यक है।

वन सम्पदा के ह्रास के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

1. जलावन के लिये वनों के वृक्षों की बड़ी मात्रा में कटाई,

2. कृषि कार्य के लिये वनों की कटाई,

3. इमारती उद्योग धन्धों के लिये लकड़ी की बड़ी मात्रा में खपत,

4. शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण वनों की कटाई

वनों के ह्रास से पर्यावरण असंतुलित होने लगता है। हवा, पानी और मिट्टी जो वन पर आधारित है, उन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वनस्पति की अवैध कटाई, अवैध शिकार, अवैध चराई, अग्निकाण्ड, अम्लीय वर्षा, ओजोन ह्रास, ध्वनि प्रदूषण, अनावृष्टि, नये-नये आविष्कारों का जन्म आदि वन सम्पदा के ह्रास के लिये मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं।

वनों का लगाना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक वनों का प्रबंधन और संरक्षण है। वनों का प्रबंधन/संरक्षण उन्हीं लोगों के हाथों सौंपा जाना चाहिए, जो वनों के विकास से प्रयत्नशील रहते हैं। ऐसा देखा जाता है कि वनों की सुरक्षा के लिये लगाए गए व्यक्ति प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से वनों के वृक्षों को कटवाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।

दूषित वायु में साँस लेने से आँख और फेफड़े की बीमारियाँ हो जाती हैं। पेड़ कटने से उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत ढीली होकर बह जाती है। धरती की उर्वरा शक्ति कम होती है। नदियों और जलाशयों में मिट्टी भरने से बाढ़ें आती हैं। वर्षा का चक्र गड़बड़ा जाता है। हरे भरे खेत/क्षेत्र बंजर रेगिस्तान में बदल जाते हैं। पर्यावरण का दूषित परिणाम नजर आने लगता है, जिसके फलस्वरूप शिशु मृत्यु दर में वृद्धि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्तर में गिरावट और अनेक प्रकार की बीमारियों के कारण औद्योगिक कार्य हानि के रूप में दिखाई पड़ता है, जिससे पूरे राष्ट्र की प्रगति की रफ्तार धीमी हो जाती है।

आज विश्व में करोड़ की संख्या में वाहन चल रहे हैं। ये वाहन डीजल, पेट्रोल तथा अन्य तेल का बड़ी मात्रा में इस्तेमाल कर रहे हैं। ये वाहन आधुनिक युग के सबसे उपयोगी यातायात के साधन माने जाते हैं। इनसे बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का निस्सरण हो रहा है जिसे रोकना तो नामुमकिन है, लेकिन इसमें कमी वन सम्पदा की रक्षा करके लायी जा सकती है।

दिन-प्रतिदिन नए-नए आविष्कारों, परमाणु भट्टियों के स्थापित किए जाने से विकिरण की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। विश्व के सभी देशों में आधुनिकीकरण की होड़ में आविष्कारों की भरमार होती जा रही है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। परमाणु विस्फोटकों से भारी मात्रा में धूलकण एवं धुआँ उठता है, जो सारे वातावरण को बुरी तरह प्रदूषित कर देता है। खाड़ी युद्ध इसका ज्वलंत उदाहरण है।

पर्यावरण प्रदूषित उसी दिन से आरम्भ हो गया था जब से मानव ने अपने आर्थिक लाभ के लिये वनों के वृक्षों का अन्धाधुँध काटना आरम्भ किया। मानव जाति का जीवन उद्भव काल से ही प्रकृति पर आश्रित रहा है। प्राकृतिक उपादान ही उसके जीवन के एकमात्र साधन थे। फल-फूल के साथ-साथ ऊर्जा और ईंधन की समस्या के समाधान के स्रोत भी अनेक प्रकार के वृक्ष ही थे। जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ पहले की तुलना में अधिक विनाश-लीला प्रस्तुत करने लगी है।

वनों के अंधाधुन्ध कटाव के इस भयावह माहौल में कल कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला जहरीला धुआँ मानव जीवन के लिये काफी खतरनाक है। वृक्षारोपण अनेक कारणों से आज मानव की एक प्राथमिक आवश्यकता है। सबसे बड़ी आवश्यकता है वातावरण और वायुमण्डल को शुद्ध बनाने की। वृक्ष हमारे नगर/गाँव, जीवन और वातावरण की शोभा/सौन्दर्य बढ़ाने वाले प्राकृतिक उपकरण हैं। मानव के स्वास्थ्य जीवन के लिये वृक्षों का कटाव रोकना और नए-नए वृक्षों का आरोपण आवश्यक है। वायुमण्डल में भर जाने वाले दूषित तत्वों, कल कारखानों से निकलने वाले दूषित धुएँ की ओर विषैली गैसों का शोषण कर वायुमण्डल एवं वातावरण को शुद्ध बनाए रखने की अद्भुत शक्ति वृक्षों में रहा करती है, वनों में वृक्षों के आरोपण से ही विनष्ट हो रही पशु/पक्षियों की अनेक प्रजातियों की रक्षा सम्भव हो सकती है। फल-फूल अनेक औषधियों और साँसों के लिये शुद्ध वायु से एकमात्र श्रोत वृक्ष हैं।

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