हमदर्दी भी कभी कभी कभी पीडा बन जाती है अपने विचार लिखिए
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कर सके जो दर्द कम किसी का, जीवन सफल होता है उसी का,” यह बात हेलेन कॆलर ने लिखी थी। कॆलर बेशक जानती थी कि मन की वेदना क्या होती है। जब वह सिर्फ 19 महीनों की थी, तब वह किसी बीमारी की वजह से पूरी तरह अंधी और बहरी हो गयी। लेकिन एक रहमदिल टीचर ने हेलेन को ब्रेल भाषा पढ़ना और लिखना सिखाया। और बाद में उसे बात करना भी सिखाया।
कॆलर की टीचर, ऐन सलिवन अच्छी तरह जानती थी कि अपंगता से होनेवाली मानसिक वेदना सहना कितना दर्दनाक होता है। ऐन भी लगभग अंधी ही थी। लेकिन उसने धीरज से काम लेते हुए ऐसा तरीका ढूँढ़ निकाला जिससे वह हेलेन के हाथ पर एक-एक अक्षर “लिखकर” उससे बात कर सके। अपनी टीचर की हमदर्दी से प्रभावित होकर, हेलेन ने फैसला किया कि वह अपनी पूरी ज़िंदगी अंधों और बहरों की मदद करने में लगा देगी। कॆलर ने कड़ी मेहनत से अपनी अपंगता पर जीत हासिल की और अब वह ऐसे लोगों की मदद करना चाहती थी, जो उसकी तरह अपंग थे, क्योंकि उसके दिल में उनके लिए हमदर्दी और दया की भावना थी।
आपने शायद देखा होगा कि स्वार्थ से भरी इस दुनिया में, ‘अपना हृदय कठोर कर लेना’ और दूसरों की ज़रूरतों को अनदेखा करना बहुत आसान है। (1 यूहन्ना 3:17, NHT) लेकिन, मसीहियों को आज्ञा दी गयी है कि वे अपने पड़ोसी से प्रेम करें और एक दूसरे के लिए गहरा प्रेम रखें। (मत्ती 22:39; 1 पतरस 4:8) फिर भी आप शायद इस हकीकत से वाकिफ होंगे: एक-दूसरे से प्यार करने की गहरी इच्छा होने के बावजूद, हम अकसर दूसरों का दर्द मिटाने के मौकों को हाथ से जाने देते हैं। शायद इसकी वजह बस यह हो कि हम उनकी ज़रूरतों के बारे में नहीं जानते। लेकिन अपने अंदर हमदर्दी का गुण पैदा करने से, भलाई करने और दया दिखाने में हमें मदद मिल सकती है।