Hame Prakriti se kya kya sikhana chahie
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मानव प्रकृति का हिस्सा है|प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं |प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती|प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है – प्र और कृति|प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना |ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि|प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है |प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है|कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है |प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति |प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व -पृथ्वी , जल अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं|मानव प्रकृति में मन , बुद्धि और अहंकार शामिल हैं |हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ श्रीमद् भगवद्गीता में वर्णित(सातवां वां अध्याय व चौथा श्लोक) – भुमिरापोनलो वायु: खं मनो बुद्धि रेव च| अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।गीता 7:4 ।। अर्थ : भगवान् श्री कृष्ण गीता में कहते हैं -पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश ये पञ्चमहाभूत और मन, बुद्धि तथा अहंकार- यह आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी ‘अपरा’ प्रकृति है। हे महाबाहो ! इस अपरा प्रकृति से भिन्न जीवरूप बनी हुई मेरी ‘परा’ प्रकृतिको जान, जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है। कहने का तात्पर्य- ये आठ प्रकार की प्रकृति समूचे ब्रह्माण्ड का निर्माण करती है|वेदों में वर्णित है की “मनुष्य का शरीर पंचभूतों यानी अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है।” इन पंचतत्वों को विज्ञान भी मानता है। अर्थात मानव शरीर प्राकृतिक प्रकृति से बना है |प्रकृति के बगैर मानव अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती है | मानव का मन, बुद्धि और अहंकार ये तीनो प्रकृति को संतुलित या संरक्षित करते हैं|प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। इतना ही नहीं, मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। आज तक मनुष्य ने जो कुछ हासिल किया वह सब प्रकृति से सीखकर ही किया है। न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों को गुरुत्वाकर्षण समेत कई पाठ प्रकृति ने सिखाए हैं तो वहीं कवियों ने प्रकृति के सानिध्य में रहकर एक से बढ़कर एक कविताएं लिखीं। इसी तरह आम आदमी ने प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव किए। दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असफलता के बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हैं। वे तब तक ऐसा करते रहते हैं जब तक सफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह फलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं। उपन्यासकार प्रेमचंद के मुताबिक साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है, जो जीवन में प्रकृति का है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है। एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है, जबकि मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षो तक फलता-फूलता है, जितने वर्षो तक उसके लगाए वृक्ष फलते-फूलते हैं।
प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे-नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है |
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