हनुमान ने मैनाक पर्वत का अनुरोध क्यों नहीं माना
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जामवंत से प्रेरित होकर, हनुमान समुद्र को पार करने के लिए निकल पड़े। वे आसमान में उड़ रहे थे। तभी समुद्र ने सोचा कि हनुमान थके होंगे, उन्होंने अपने अंदर रहने वाले मैनाक पर्वत से हनुमान को विश्राम देने के लिए कहा। मैनाक पर्वत ने हनुमानजी से कहा कि आप थक गए होंगे, मेरे ऊपर कुछ देर विश्राम करें। निमंत्रण का आदर करते हुए हनुमानजी ने उन्हें स्पर्श ही किया और कहा कि मुझे रामजी का काम किये बिना चैन नहीं मिलता। मैनाक का मान भी बना रहा। हनुमान आगे बढ़े। रुका नहीं, लक्ष्य नहीं भूला। हमें भी इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति तक विश्राम नहीं करना चाहिए।
लक्ष्य के लिए झुकना ही पड़े तो झुक जाओ
सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे हनुमान को बीच रास्ते में सुरसा नाम के सर्प ने रोक लिया और उन्हें खाने की जिद करने लगे। हनुमानजी ने बहुत मनाया, पर नहीं माने। उसने वचन भी दिया, राम का काम करके आने दो, फिर वह स्वयं आकर तुम्हारा आहार बनेगा, पर सुरसा न मानी। हनुमानजी समझ गए कि यह मेरे खाने की बात नहीं है, अहंकार की ही बात है। उन्होंने तुरंत सुरसा के विराट रूप के सामने खुद को कम कर लिया। घूम घूम कर उसके मुख से निकल गए। सुरसा ने प्रसन्न होकर लंका का मार्ग प्रशस्त किया। हनुमान जी के इस उदाहरण से हमें सीख मिलती है कि जहां बात महत्वपूर्ण हो वहां बल नहीं, बल्कि बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। बड़े लक्ष्य को पाने के लिए झुकना भी पड़े तो झुकना।
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