Hindi, asked by Manoranjansahu8200, 1 year ago

Hanuman ka asli naam kya hai

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Answered by lokesh791
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शास्त्रानुसार हनुमान जी अप्सरा पुंजिकस्थली (अंजनी) व केसरी नामक वानर के पुत्र हैं। विवाह उपरांत कई वर्षों तक देवी अन्जना संतान सुख से वंचित थी। कई यतन करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस दुःख से पीड़ित देवी अंजना ने भारत के दक्षिण में स्थित ऋषि मतंग के आश्रम में जाकर उनसे शरण मांगी। मंतग ऋषि ने देवी अंजना को शरण देकर उन्हें आज्ञा दी कि वो पप्पा सरोवर स्थित नरसिंहा आश्रम के निकट नारायण पर्वत पर स्थित स्वामी तीर्थ पर जाकर स्नान करें तथा बारह वर्ष तक उपवास रखकर मात्र प्राण वायु का सेवन कर शिव उपासना करें। देवी अंजना ने मतंग ऋषि व पति केसरी से आज्ञा लेकर तप प्रारंभ किया। तप के दौरान बारह वर्षों तक देवी अंजना ने मात्र प्राण वायु का ही भक्षण कर अघोर शिव उपासना की।

देवी अंजना का तप सफल हुआ तब अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पवन देव को आदेश देकर अपने अंश अर्थात शिवाणु (शिव के अणु) को अंजना के गर्भ में स्थापित करवाया। जिसके परिणाम-स्वरूप चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अंजना के गर्भ से एकादश रुद्रावतार पवनसुत अणु-मान की उत्पत्ति हुई। पवनदेव द्वारा उत्पन्न इस पुत्र को ऋषिमुनियों ने वायुपुत्र नाम दिया परंतु हनुमान वास्तवकिता मे शिवांश अर्थात शिव के ही अणु हैं। जन्म के उपरांत हनुमान जी (अणु-मान) सूर्यदेव को फल समझकर तथा फल के खाने की इच्छा से उड़कर आकाश-मार्ग में गए। मार्ग में उनकी टक्कर राहु से हो गई। घबराए हुए राहु ने इंद्रदेव से रक्षा की याचना की।

इंद्र राहू की रक्षा हेतु घटनास्थल पर राहू के साथ पहुंचे। हनुमान जी राहू को फल समझ कर उन पर झपटे। तभी हनुमान ने इंद्र देव के हाथी ऐरावत को देखा। उसे और भी बड़ा फल जानकर वे पकड़ने के लिए बढ़े। इंद्रदेव ने क्रुद्ध होकर अपने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार किया, जिससे हनुमान की बाईं ठोड़ी टूट गई और वे नीचे गिरे। पुत्र हनुमान को घायल देखकर पवन देव ने संसार-भर की प्राण-वायु रोक ली। इस पर इंद्रदेव व ब्रह्मा विभिन्न देवताओं को लेकर पवन देव के पास पहुंचे तथा अणु-मान जी को पुनः स्वस्थ्य किया। सभी देवताओं ने मिलकर अणु-मान जी को अनेक वरदान दिए तथा इंद्रदेव ने अणु-मान जी को प्रस्संतापुर्वक स्वर्णकमल की माला भेंट कर कहा- ‘मेरे वज्र से आपकी “हनु” टूटी है, अत: आज से आप हनुमान कहलाएंगे तथा इंद्र के वज्र से आपका कभी अहित नही होगा। इस तरह अणु-मान जी का नाम हनु-मान पड़ा।

वैज्ञानिक दृष्टि से संपूर्ण ब्राह्ममांड का जन्म ही मात्र एक “अणु” से ही हुआ है तथा शास्त्रानुसार हम सभी से शरीर में भी पूरा ब्राहमांड बसता है। शास्त्र कहते हैं कि

“यत् पिण्डे, तत् ब्रह्मांडे”

अर्थात हमारा सूक्ष्म शरीर, भाव जगत और हमारी देह ब्रहमांड की ही अभिव्यक्ति है। जिन तत्त्वों और शक्तियों से ब्रहमांड बना है, उन्हीं से हमारा शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मा भी बने हैं। धर्म को न मानने वाले लोग शायद यह न समझ पाएं की कैसे भगवान शंकर का अणु किसी में समाहित हो सकता है परंतु यह संपूर्ण ब्राह्ममांड ही मात्र शिव और शक्ति की संरचना है। शिव और शक्ति की इसी महान संरचना को लोग हनुमान, बजरंगी और अब अणु-मान के नाम से जानते हैं।

“श्रीरामदूतं शरणम प्रपद्ये” जय हनुमान – जय हनुमान।

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