हरा भरा हो घर संसार विषय पर अनुच्छेद लिखिए
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पर्यावरण शुद्धता के मामले में हमारे पूर्वज हमसे बहुत ज्यादा भाग्यशाली थे। आज हमें शुद्ध मिट्टी, जल, वायु और गहरी नींद नसीब नहीं है। चाहे हमारे बाजार हजारों जरूरी और गैर-जरूरी चीजों से पटे क्यों न पड़े हैं।
दिन-पर-दिन पर्यावरण प्रदूषण के पैर पसरते जा रहे हैं। हमारे शहरों की चमक-दमक जिस तेज गति से बढ़ी है, जहरीले कचरे के ढेर भी उससे ज्यादा गति से ऊंचे होते जा रहे हैं। ओजोन गैस की परत में गहरे सूराख होने लगे हैं जिससे सर्वपोषक सूर्य ताप भी कैंसर का कारण बनने लगा है।
हमारी जलवायु तेज से गर्म होती जा रही है। हिमखंडों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और उसके किनारे बसे नगरों को भीषण खतरों का सामना करना पड़ेगा। धरती मां की प्राकृतिक सुषमा घटती जा रही है।
भूमिगत जल का स्तर पाताल के नीचे चला गया है। हमारे खाद्य पदार्थ विषाक्त बनते जा रहे हैं। पेयजल का संकट सुरसा के सिर की तरह बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक कचरे, रासायनिक स्रावों और मानव मल-मूत्र ने गंगा जैसी पवित्र नदियों को गंदगी से पाट दिया है।
वनस्पति और जीव-जंतुओं की हजारों जातियां लुप्त हो गई हैं। जैविक वैविध्य घटता जा रहा है। आसमान में पक्षीगण कितने कम दिखाई देते हैं। हवा में उड़ते प्रदूषकों ने अपने मूल स्थान से सैकड़ों किलोमीटर दूर के जन-जीवन को दुष्प्रभावित किया है। ताप, शोर, दुर्गंध आदि का साम्राज्य सभी दूर फैल गया है।
चांद पर विचरण और मंगल ग्रह में जीवन की खोज करने वाले मनुष्य ने क्या सचमुच यह ठान लिया है कि वह इस इस प्यारी धरती को रहने योग्य नहीं रहने देगा? अब तो अंतरिक्ष भी उसके कचरे से कांपने लगा है।
आधुनिक पर्यावरण चिंतकों ने भी अंग्रेजी अक्षर 'R' से शुरू होने वाले 3 शब्दों को बड़ा महत्व प्रदान किया है।
(1) Reduce
(2) Reuse
(3) Recycle
अर्थात सादगी से रहो एवं उपभोग कम करो। चीजों को फेंको नहीं, बारंबार पुन: उपयोग करो।
उपयोग में लाई जा चुकी वस्तुओं का भी पुनर्निर्माण करो और उनको काम में लो। ये तीनों बातें हमारी परंपरागत जीवनशैली में रची-बसी रही हैं। जिसको हम पिछले दिनों भूलने लगे थे। इस सूची में पर्यावरण हितैषी जीवनशैली की दृष्टि से तीन और शब्दों को हम जोड़ना चाहते हैं, जो 'R' से ही प्रारंभ होते हैं।
1) Respect
(2) Repair
(3) Redistribute
इनका आशय स्पष्ट है- चीजों को आदर दो, उन्हें दुरुस्त कर पुन: काम में लो और संवेदनशीलता के आधार पर जरूरतमंद लोगों के बीच उनका पुनर्वितरण करो।
पर्यावरण की समस्या ने भारत सहित पूरी दुनिया का ध्यान 'हिन्दू तत्वज्ञान' की ओर पुन: आकर्षित किया है। धरती हमारी मां है, हम इसकी संतान हैं। भोजन मात्र खाद्य पदार्थ नहीं, भगवान का प्रसाद है। जल वरुण देवता है। सूर्य आग का विशाल गोला नहीं, भगवान विष्णु का रूप है, जो जगत का पालन करते हैं। वायु उनपचास रूपों में प्रचलित देवता है। शब्द ब्रह्म है। समय महाकाल का वरदान है। अन्य जीव-जन्तु मां प्रकृति के कारण हमारे सहोदर हैं। पक्षी, पेड़, लता आदि मां के पवित्र श्रृंगार साधन हैं। 'वन' शब्द जीवन से जुड़ा हुआ है। हमारे प्रत्येक देवी-देवता के साथ कोई पशु-पक्षी जरूर है।
तृण, वनस्पति, लता और वृक्षों के साथ भारतीयों का हजारों वर्षों से प्रगाढ़ प्रेम रहा है, क्योंकि वे अपने पत्ते, फूल, फल, छाया, मूल, छाल, काष्ठ, गंध, दूध, गोंद, भस्म, गुठली और कोमल अंकुर से सभी प्राणियों को सुख पहुंचाते हैं। वेद व्यास कहते हैं- एक वृक्ष 10 पुत्रों से बढ़कर है। पूत कपूत हो सकता है, लेकिन वृक्ष कपूत नहीं होता। हमारा विकास ऐसा हो कि धरती पर हरियाली की चादर बिछा दें और फैक्टरियां ऐसी बनाएं कि उनकी छतों पर मोर नाच सकें। शिवम् अर्थात सुमंगलमय ज्ञान और विज्ञान पर आधारित टेक्नोलॉजी को भस्मासुरी प्रवृत्तियां छोड़ देनी चाहिए।
प्रदूषण को भयानक संकट की सीमा तक ले जाने वाली उपभोग और उत्पादन शैली पर पुनर्विचार जरूरी है। यदि ऐसा नहीं किया तो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की वही मूर्खता करेंगे।