हरी भरी धरती पर कविता
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here is your poem
किसी की भी युद्ध लोलुपता
विनष्ट नहीं कर सकती है
इस धरती को
यह धरती हरी-भरी रहेगी
हरे-भरे रहेंगे पेड़-पौधे
रंग-बिरंगे खिलते रहेंगे फूल
आकर्षक और सुगन्ध भरे
इन्हीं फूलों की तरह
खिली रहेगी
बच्चों के होठों पर हँसी
किसी की भी युद्ध लोलुपता
विनष्ट नहीं कर सकती है
इस धरती को
यह धरती हरी-भरी रहेगी
किसी की भी युद्ध लोलुपता
विनष्ट नहीं कर सकती है
इस धरती को
यह धरती हरी-भरी रहेगी
हरे-भरे रहेंगे पेड़-पौधे
रंग-बिरंगे खिलते रहेंगे फूल
आकर्षक और सुगन्ध भरे
इन्हीं फूलों की तरह
खिली रहेगी
बच्चों के होठों पर हँसी
किसी की भी युद्ध लोलुपता
विनष्ट नहीं कर सकती है
इस धरती को
यह धरती हरी-भरी रहेगी
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#Here is ur Kavita..
•दुनिया में एक ही जगह
जहाँ जन्मा है इन्सान,
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
खाने को धरा ने अन्न दिया
जल दिया है हमको पीने को
फल-फूल और हैं जीव दिए
हैं श्वास दिए हमें जीने को,
अपना सबको मान कर
रहने को दिया स्थान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
मानव का है इतिहास यहाँ
पढ़ता अब तक सारा जहां
यहाँ वीरों की हैं गाथाएं
जन्में हैं यहाँ पर लोग महान,
सबका एक ही लक्ष्य था बस ये
मातृभूमि को मिले सम्मान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
जैसे जैसे युग है बदला
बदल गए सब लोग
बेईमानी बस गयी रगों में
मतलब का लग गया है रोग,
भूल गए इंसानियत सारी
सब बन गए हैं हैवान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
घोल रहें है जहर ये जल में
कूड़ा-करकट भर रहे हैं थल में
हवा हो रही है जहरीली
बिक रही है चीजें खूब नशीली,
स्वर्ग बनाना था जिसको
उसे बना रहे हैं श्मशान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
अब सबको ये समझाना होगा
इस धरा को हमको बचाना होगा
अस्तित्व बचाने को सन्देश ये
जन-जन तक पहुँचाना होगा,
होगा तभी यह संभव
जब सबको होगा इसका ज्ञान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
दुनिया में एक ही जगह
जहाँ जन्मा है इन्सान,
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
•दुनिया में एक ही जगह
जहाँ जन्मा है इन्सान,
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
खाने को धरा ने अन्न दिया
जल दिया है हमको पीने को
फल-फूल और हैं जीव दिए
हैं श्वास दिए हमें जीने को,
अपना सबको मान कर
रहने को दिया स्थान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
मानव का है इतिहास यहाँ
पढ़ता अब तक सारा जहां
यहाँ वीरों की हैं गाथाएं
जन्में हैं यहाँ पर लोग महान,
सबका एक ही लक्ष्य था बस ये
मातृभूमि को मिले सम्मान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
जैसे जैसे युग है बदला
बदल गए सब लोग
बेईमानी बस गयी रगों में
मतलब का लग गया है रोग,
भूल गए इंसानियत सारी
सब बन गए हैं हैवान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
घोल रहें है जहर ये जल में
कूड़ा-करकट भर रहे हैं थल में
हवा हो रही है जहरीली
बिक रही है चीजें खूब नशीली,
स्वर्ग बनाना था जिसको
उसे बना रहे हैं श्मशान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
अब सबको ये समझाना होगा
इस धरा को हमको बचाना होगा
अस्तित्व बचाने को सन्देश ये
जन-जन तक पहुँचाना होगा,
होगा तभी यह संभव
जब सबको होगा इसका ज्ञान
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
दुनिया में एक ही जगह
जहाँ जन्मा है इन्सान,
ये धरती माता है अपनी
और हम इसकी संतान।
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