हर छोटा बदलाव बड़ी कामयाबी का हिस्सा होता है।
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‘सफलता रुपी पुरस्कार का पूर्ण आनंद उठाने के लिए इंसान को अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करने की आवश्यकता होती है|’ अब्दुल कलाम जी का यह कथन वास्तव में आज की परिस्थिति में चरितार्थ हुआ हैक्योंकि लॉकडाउन के आरंभिक दिनों में हर एक व्यक्ति को भिन्न-भिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा | परन्तु इसी समय समाज के कुछ महत्वपूर्ण वर्गों ने इन मुश्किलों पर अपने विवेक, धैर्य और परिश्रम से विजय भी पाई और वास्तव में उन्ही के कारण आम आदमी का जीवन सुचारू रूप से चलता भी रहा | इस चुनौती पूर्ण समय में आज अपने योगदान से डॉक्टर, पुलिसकर्मी, सफाई कर्मचारी और इनके समान ही अनेक व्यक्ति सच्चे अर्थों में समाज के लिए आदर्श बन गए हैं| इन तथाकथित वर्गों को हम शत-शत नमन करते हैं |
इन्हीं में से एक प्रमुख वर्ग आता है – ‘शिक्षक वर्ग’ | आचार्य चाणक्य के अनुसार ‘शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है’ | छात्रों का भविष्य उज्ज्वल बनाने में इस वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है | समाज की सम्मानीय इस श्रेणीं ने भी विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना किया | वास्तविक कक्षा से सीधे आभासी कक्षा में परिवर्तन, आसन बात नहीं थी | एक शिक्षक छात्र को केवल पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाता, बल्कि प्रत्येक अध्यापक का अपने विद्यार्थियों से भावनात्मक संबंध भी होता है | शिक्षक के हाव-भाव से भरी मुद्राएँ, हँसी-मजाक, कभी-कभी विषय की गंभीरता और छात्रों की प्रतिक्रिया, इन्हीं सभी बातों के संयोजन से एक कक्षा में रस आता है | एक गुरु अपने शिष्य को केवल कक्षा उत्तीर्ण करने के लिए आवश्यक ज्ञान ही न देकर व्यवहारिक ज्ञान, शिष्टाचार, नैतिक मूल्य आदि कई बातें सिखाता है | शिक्षक और छात्र का संबंध ही कुछ ऐसा है खासकर आज के युग में | आज कहीं न कहीं कुछ हद तक विद्यार्थी अपने शिक्षक में एक मित्र भी ढूँढता है |
आज हम तकनीकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बहुत आभारी है, जिसके कारण ऐसी विषम परिस्थितियों में भी अपने विद्यार्थियों से जुड़े हुए हैं | शुरूआती दौर में हम सभी को तकनीकी के उचित प्रयोगकी बारीकियाँ सीखने में कई अड़चने आई लेकिन हमने सभी बाधाओं को पार किया | वैसे तो इस महामारी से संघर्ष करने के लिए अपनाए जा रहे मूलमंत्र में से एक है- सोशल डिसटेंसिंग |लेकिन हम आभासी माध्यम से विभिन्न सोशल प्लेटफोर्म के ज़रिए एक-दूसरे के करीब आए | एक-दूसरे से सीखना और एक-दूसरे को सिखाना ही हमने अपना उद्देश्य बना लिया | अपने मार्ग की छोटी-मोटी रुकावटों को पार करते हुए आज हम गर्व से कह सकते हैं कि हम काफ़ी हद तक तकीनीकी के सदुपयोग में पारंगत हो गए हैं |
आपसी सहयोग और विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से हम छात्रों को पाठ्यक्रम पढ़ाने में दक्ष तो हो गए हैं लेकिन अभी हमें आवश्यकता है उनकी मानसिक भावनाओं के बारे में जानने और समझने की | यह बहुत ही विचारणीय बात है कि कहाँ 3 एकड़ में फैला स्कूल का प्रांगण अभी सिर्फ 15-20 इंच की स्क्रीन तक सीमित रह गया है | छात्रों का गेम पीरियड का उत्साह, लंच मेन्यु जानना, पुस्तकालय में जाकर अपनी मनपसंद किताब पढ़ना, बस-वे से कक्षा तक धीरे-धीरे आना और सबसे महत्वपूर्ण बात उनके मित्र, कहीं न कहीं छात्र इन सबसे वंचित हैं | विद्यार्थियों के जीवन में मित्र की बहुत अहमियत होती है क्योंकि वे अपने दोस्तों के साथ ही अपनी खट्टी-मीठी बातें बाँटते हैं | इन सभी की कमी तो हम पूरा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हाँ, हम अपने बच्चो को अपनी कक्षा में कुछ समय ज़रूर दे सकते हैं | हम सिर्फ उनको सुन सकते हैं, शायद उन्हें लग सकता है कि कोई उन्हें सुन रहा है और उनकी बातों को महत्व दे रहा है | इतनी छोटी ख़ुशी हम अपने विद्यार्थिओं को अवश्य ही दे सकते हैं |
भाषा की अध्यापिका होने के कारण मुझे यह अनुभव प्राप्त भी हुआ कि आज हर एक विद्यार्थी बोलना चाहता है | वास्तविक कक्षा में कुछ छात्र, जो बोलने में झिझकते थे, इन आभासी कक्षाओं में उनमें बोलने का अनोखा उत्साह देखने को मिला | कक्षा में होने वाली एक गतिविधि के दौरान छात्रों को निर्धारित विषय पर बोलना था तभी मैंने अन्य छात्रों को उनकी अभिव्यक्ति के बारे में प्रतिक्रिया देने को कहा | मेरी यह रणनीति बहुत ही मददगार साबित हुई | हर एक विद्यार्थी अन्य छात्र के भाषण को रूचि से सुन रहा था और अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा था | छात्रों की उत्सुकता, उत्साह और तत्परता से उनकी मानसिक अवस्था का पता लगाया जा सकता था कि आज ये बच्चे बोलने के लिए कितने आतुर हैं |
“शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है | अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होगा”, अब्दुल कलाम जी का यह कथन वास्तव में बहुत ही प्रेरणादायी है | हम महान शिक्षक तो नहीं लेकिन अच्छे शिक्षक ज़रूर बन सकते हैं | और एक अच्छे शिक्षक बनने के लिए हमें आज की परिस्थिति में सबसे पहले एक अच्छा श्रोता बनना पड़ेगा जो हमारे लिए भी फायदेमंद होगा | कहा भी जाता है कि ‘जब आप बोलते हो, तो केवल वही बात दोहराते हो जो आपको पहले से ही पता है लेकिन जब आप सुनते हो तो आप कुछ नया सीखते हो’ |