हरि हैं राजनीति पढि आए।
समुझी वात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए। इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए। अब अपने मन फेर पाइहै, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति कर आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यह 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।।
(क) प्रस्तुत काव्यांश काव्यखंड की किस कवि व कविता से संबंधित है?
(0) पद-सूरदास
(ii) राम-लक्ष्मण-परशुराम
(ii) आत्मकथ्य-जयशंकर प्रसाद (iu) उत्साह-सूर्यकान्त
(ख) श्रीकृष्ण द्वारा चुराए गए मन को वापस माँगने में निहित गोपियों की मनोव्यथा कैसी हो गई थी?
(0) अत्यंत दयनीय (iii) अत्यंत चितंनीय
(ग) गोपियाँ श्रीकृष्ण से क्या वापस चाहती थीं?
() मन
(i) कर्म
(ii) अत्यंत सुदृढ़ (it) इनमें से कोई नहीं
(iii) विचार
(घ) काव्यांश के आधार पर बताइए कि गोपियाँ किस भाव से श्रीकृष्ण से निवेदन करती हैं?
() दयनीय भाव से
(a) कठोरतम भाव से
(ङ) गोपियों के अनुसार सच्चा राजधर्म क्या है?
Answers
Answered by
1
इस सवाल का क्या करना है कृपया मुझे समझाएं
Similar questions