हरिहर काका पाठ के माध्यम से लेखक ने संयुक्त परिवारों के बारे में जो कुछ बताया है क्या आप लेखक से सहमत हैं ?अपने विचार लिखें ।
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- हरिहर काका के मामले में गाँव के लोगों के दो वर्ग बन गए थे। दोनों ही पक्ष के लोगों की अपनी-अपनी राय थी। आधे लोग परिवार वालों के पक्ष में थे। उनका कहना था कि काका की जमीन पर हक तो उनके परिवार वालों का बनता है। काका को अपनी ज़मीन-जायदाद अपने भाइयों के नाम लिख देनी चाहिए, ऐसा न करना अन्याय होगा। दूसरे पक्ष के लोगों का मानना था कि महंत हरिहर की ज़मीन उनको मोक्ष दिलाने के लिए लेना चाहता है। काका को अपनी ज़मीन ठाकुरजी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनका नाम या यश भी फैलेगा और उन्हें सीधे बैकुंठ की प्राप्ति होगी। इस प्रकार जितने मुँह थे उतनी बातें होने लगीं। प्रत्येक का अपना मत था। इन सबको एक कारण था कि हरिहर काका विधुर थे और उनकी अपनी कोई संतान न थी जो उनका उत्तराधिकारी बनता। पंद्रह बीघे जमीन के कारण इन सबका लालच स्वाभाविक था।
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हरिहर काका के मामले में गाँव के लोगों के दो वर्ग बन गए थे। दोनों ही पक्ष के लोगों की अपनी-अपनी राय थी। आधे लोग परिवार वालों के पक्ष में थे। उनका कहना था कि काका की जमीन पर हक तो उनके परिवार वालों का बनता है। काका को अपनी ज़मीन-जायदाद अपने भाइयों के नाम लिख देनी चाहिए, ऐसा न करना अन्याय होगा। दूसरे पक्ष के लोगों का मानना था कि महंत हरिहर की ज़मीन उनको मोक्ष दिलाने के लिए लेना चाहता है। काका को अपनी ज़मीन ठाकुरजी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनका नाम या यश भी फैलेगा और उन्हें सीधे बैकुंठ की प्राप्ति होगी। इस प्रकार जितने मुँह थे उतनी बातें होने लगीं। प्रत्येक का अपना मत था। इन सबको एक कारण था कि हरिहर काका विधुर थे और उनकी अपनी कोई संतान न थी जो उनका उत्तराधिकारी बनता। पंद्रह बीघे जमीन के कारण इन सबका लालच स्वाभाविक था।
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