हरिजीउ ते सभै सरै' का आशय बताएँ |
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कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥ व्याख्यान : हे प्रभु ! तुम्हारे बिना कौन ऐसा कृपालु है जो भक्त के लिए इतना बडा कार्य कर सकता है ।
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कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥ रैदास के पद भावार्थ : रैदास के पद की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रभु की कृपा एवं महिमा का वर्णन किया है। उनके अनुसार इस संपूर्ण जगत में प्रभु से बड़ा कृपालु और कोई नहीं। ... इसी कारणवश कवि को यह लग रहा है कि अछूत होने के बाद भी उन पर प्रभु ने असीम कृपा की है।
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