हर किरण, हर संदेश वाहिका
पवन, गीत तेरे गाता
तेरे चरणों को छूने को
लालायित हिमगिरि का माथा|
तुझसे ही सूर्य प्रकाशित है
आलोक सृष्टि में तेरा है,
संपूर्ण सृष्टि का रोम-रोम
चिर ऋण, उपासक तेरा है |
अगणित आकाश गंगाएँ
नन्हीं बूंदें तेरे आगे
तू आदि-अंत से मुक्त
काल-अस्तित्व हीन तेरे आगे
हे जगत नियंता, जगत-पिता,
है व्याप तेरा कितना ईश्वर,
तेरे चरणों में नत मस्तक,
कितनी धरती , कितने अंबर
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अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।
यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहा
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