हर मनुष्या या समाज या राज्य के लिए कुछ गहराई का होना और कहीं न कहा उसका
जड़ें होना आवश्यक है । जब तक उनकी जड़ अतीत में न हो तब तक उनकी कोई गिनती
नहीं होती और अतीत आखिर पीढ़ियों के अनुभव और कई प्रकार की समझ-बूझ का सचय
है। आपके पास इसका होना जरूरी है वरना आप किसी दूसरी चीज की एक घटिया
नकलमात्र रह जाएंगे और एक व्यक्ति या समूह के नाते आपको उसका कोई लाभ नहीं होगा।
दसरी ओर यह भी है कि कोई केवल जड़ों तक ही सीमित नहीं रह सकता। जड़ों से भी अंकुर
फूटकर जब तक ऊपर धूप और खुली हवा में नहीं आते तो जड़े भी संकट में पड़ जाती है।
सुसंस्कृत मन की जड़ भले ही अपने अंदर ही हो, लेकिन उसे अपने दरवाजे और
खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए । उसमें दूसरे की दृष्टि को पूरी तरह समझने की क्षमता अवश्य
होनी चाहिए, भले ही वह उससे हमेशा सहमत न हो । सहमति और असहमति का सवाल तभी
उठता है जब आप किसी चीज़ को समझते हैं, अन्यथा यह आँख बंद करके स्वीकार करना है.
जिसे किसी भी चीज के बारे में सुसंस्कृत दृष्टि नहीं कहा जा सकता।
(क) हमारी जड़ों का अतीत से जुड़ना क्यों जरूरी है ?
(ख) लेखक ने प्रगति के लिए क्या सुझाव दिए हैं ?
(ग) सुसंस्कृत व्यक्ति के किन गुणों की ओर संकेत किया गया है ?
(घ) सुसंस्कृत दृष्टि क्या है ? उसे क्यों आवश्यक माना गया है ?
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(च) किसी तथ्य के बारे में व्यक्ति अपनी राय कब प्रकट कर सकता
Answers
Answer:
पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।
— संस्कृत सुभाषित
विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है ।
— मैथ्यू अर्नाल्ड
संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।
— चाणक्य
सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें ।
— गोथे
मैं उक्तियों से घृणा करता हूँ । वह कहो जो तुम जानते हो ।
— इमर्सन
किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा।
— सर विंस्टन चर्चिल
बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।
— आईजक दिसराली
— मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं।
सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती।
— राबर्ट हेमिल्टन