हरि और अहंकार साथ साथ नही रह्ते क्यू? poem काकी
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इस पंक्ति द्वारा कबीर का कहते है कि जब तक यह मानता था कि 'मैं हूँ', तब तक मेरे सामने हरि नहीं थे। और अब हरि आ प्रगटे, तो मैं नहीं रहा। अँधेरा और उजाला एक साथ, एक ही समय, कैसे रह सकते हैं? जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता अर्थात् अहंकार और ईश्वर का साथ-साथ रहना नामुमकिन है
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इस पंक्ति द्वारा कबीर का कहते है कि जब तक यह मानता था कि 'मैं हूँ', तब तक मेरे सामने हरि नहीं थे। और अब हरि आ प्रगटे, तो मैं नहीं रहा। अँधेरा और उजाला एक साथ, एक ही समय, कैसे रह सकते हैं? जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता अर्थात् अहंकार और ईश्वर का साथ-साथ रहना नामुमकिन है।
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