हरिशंकर परसाई जी ने अपनी रचना भोलाराम का जीव में की सामाजिक अव्यवस्था को उजागर किया है विस्तृत विवेचना कीजिए
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iska vivechna karna bahu lamba hai
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लेखक ने अपने इस व्यंग्य के माध्यम से समाज में
होने वाले विचारों के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश
डाला है। लेखक का कहना है कि आज चालाकी,
झूठ, जालसाजी एवं रिश्वतखोरी का चारों और
बोलबाला है। समाज का प्रत्येक कोण का व्यक्ति इस
रिश्वतखोरी एवं चालाकी के रोग से ग्रसित है। बिना
इराक कोई भी काम नहीं होता है।
लेखक ने सबसे पहले कारीगरों, ठेकेसरों एवं
इंजीनियरों पर व्यंग्य किया है। ये किस प्रकार रही
सामग्री का प्रयोग करके भवन निर्माण करते हैं।
भवन निर्माण के लिए आये हुए रुपयों को किस
प्रकार हड़प लेते हैं।
इसके पक्षात सरकारी दफ्तरों की दुर्दशा का वर्णन
किया है। जहाँ चपरासी से लेकर साहब तक सभी
को रिक्षत चाहिए। बिना रिश्वत लिए किस प्रकार
प्रार्थना-पत्र हवा में उड़ जाते हैं अर्थात् कागजों पर
कार्यवाही रुक जाती है। इस बात पर लेखक ने व्यंग्य
किया है। रिश्वत और घूस लेने की बात को न तो
साहब खुलकर कहते हैं और न ही चपरासी।
रिश्वत लेने के साहब व चपरासियों के ऐसे सूक्ष्म
संकेतात्मक शब्द होते हैं जो कि इस बात को स्पष्ट
कर देते हैं कि कर्मचारी का काम केले होगा। इस
व्यास में लेखक ने रिश्वत देने के लिए वजन शब्द
का प्रयोग किया है। बिना भजन के कागज उड
जाएंगे। इस प्रकार व्यंग्यपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया
है।
सरकारी दफ्तरों में फैली अव्यवस्था, भ्रष्टाचार एवं
घूसखोरी का वर्णन किया है। उन्होंने यह भी बताया
जो कर्मचारी अपने जीवन के बहुमूल्य क्षण सरकारी
सेवा में लगाते हैं। उनको रिटायर होने के बाद किस
पत्रकार पेंशन के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पहते
है।
दफ्तरों के चक्कर काटने के उपरान्त भी धन का
बढ़ावा न चढ़ाने पर व्यक्ति को भूखे मरने की नौबत
आ जाती है। इस प्रकार सरकारी दफ्तरों की दशा
का ऐसा वर्णन किया है जो पाठक के सम्मुख दफ्तरों
की व्यवस्था एवं अनियमितता का परिचायक है ।
लेखक ने मानव की आधुनिकता पर भी प्रहार किया
है और बताया है कि आज के युग में कोई साधु
सन्तों को भी नहीं पूजता है। वे साधुओं की भी
अवहेलना करते हैं।
परसाई जी ने समाज की कुत्सित मनोवृत्ति को
उजागर किया है। सामाजिक विसंगतियों तथा
मानसिक दुर्बलता, राजनीति व रिश्वतखोरी एवं
लालफीताशाही पर तीखा व्यंग्य किया है।