Hindi, asked by thehyperunknowngamin, 3 months ago

हरिशंकर परसाई जी ने प्रेमचंद जी का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व की कौन कौन सी विशेषताएं उभरकर सामने आती हैं

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Answered by piyushmishraaa11
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Answer:

उत्तर :-

हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का व्यक्तित्व हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे यह बात उभरकर सामने आई है कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे । वे धोती-कुर्ता कुर्ता पहनते थे। वे सिर पर मोटे कपड़े की टोपी और पैरों में केनवस का साधारण जूता पहनते थे। वे अपनी वेशभूषा पर विशेष ध्यान नहीं देते थे। उन्हें इस बात की बिल्कुल चिंता नहीं रहती थी कि लोग क्या कहेंगे। फटे जूते से उंगली बाहर निकली होने पर भी उन्हें किसी प्रकार की शर्म का अनुभव नहीं होता था।

उनके व्यक्तित्व के बारे में निम्न बातों का पता चलता है :

•वे सदैव कार्य करते रहते थे।

•वे आशावादी एवं स्वयं पर यकीन रखने वाले व्यक्ति थे।

•वे मुसीबतों से घबराते नहीं थे और वे समझौतावादी नहीं थे।

Answered by Anonymous
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Answer:

'प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक व्यंग्य को पढ़कर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं-

संघर्षशील लेखक-

प्रेमचंद आजीवन संघर्ष करते रहे। उन्होंने मार्ग में आने वाली चट्टानों को ठोकरें मारीं। अगल-बगल के रास्ते नहीं खोजे। समझौते नहीं किए। लेखक के शब्दों में

“तुम किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे हो। ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया।”

अपराजेय व्यक्तित्व-

प्रेमचंद का व्यक्तित्व अपराजेय था। उन्होंने कष्ट सहकर भी कभी हार नहीं मानी। यदि वे मनचाहा परिवर्तन नहीं कर पाए, तो कम-से-कम कमजोरियों पर हँसे तो सही। उन्होंने निराश-हताश जीने की बजाय मुसकान बनाए रखी। उनकी नज़रों में तीखा व्यंग्य और आत्मविश्वास था। लेखक के शब्दों में–“यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है।”

कष्टग्रस्त जीवन-

प्रेमचंद जीवन-भर आर्थिक संकट झेलते रहे। उन्होंने गरीबी को सहर्ष स्वीकार किया। वे बहुत सीधे-सादे वस्त्र पहनते थे। उनके पास पहनने को ठीक-से जूते भी नहीं थे। फिर भी वे हीनता से पीड़ित नहीं थे। उन्होंने फोटो खिंचवाने में भी अपनी सहजता बनाए रखी।

सहजता-

प्रेमचंद अंदर-बाहर से एक थे। लेखक के शब्दों में-”इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी-इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है।”

मर्यादित जीवन-

प्रेमचंद ने जीवन-भर मानवीय मर्यादाओं को निभाया। उन्होंने अपने नेम-धरम को, अर्थात् लेखकीय गरिमा को बनाए रखा। वे व्यक्ति के रूप में तथा लेखक के रूप में श्रेष्ठ आचरण करते रहे।

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