हरित भूमि तृन संकुल, समुझि परही नहिं पंथ ।
जिमि पाखंड बिबाद ते, लुप्त होहिं सद्ग्रंथ।।
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हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ। जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ॥
भावार्थ: पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ नहीं पड़ते। जैसे पाखंड मत के प्रचार से सद्ग्रंथ गुप्त (लुप्त) हो जाते हैंl
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