Social Sciences, asked by kajal23may, 1 month ago

हरित क्रांति के सकारात्मक या नकारात्मक प्रभावों को लिखिए​

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Explanation:

हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव

हरित क्रांति से देश में खाद्यान्न उत्पादन तथा खाद्यान्न गहनता दोनों में तीव्र वृद्धि हुई और भारत अनाज उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो सका। वर्ष 1968 में गेहूँ का उत्पादन 170 लाख टन हो गया जो कि उस समय का रिकॉर्ड था तथा उसके बाद के वर्षों में यह उत्पादन लगातार बढ़ता गया।

हरित क्रांति के बाद कृषि में नवीन मशीनों जैसे- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, ट्यूबवेल, पंप आदि का प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार तकनीकी के प्रयोग से कृषि का स्तर बढ़ा तथा कम समय और श्रम में अधिक उत्पादन संभव हुआ।

कृषि के मशीनीकरण के चलते कृषि हेतु प्रयोग होने वाली मशीनों के अलावा हाइब्रिड बीजों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी तथा रासायनिक उर्वरकों की मांग में तीव्र वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप देश में इससे संबंधित उद्योगों का अत्यधिक विकास हुआ।

हरित क्रांति के फलस्वरूप कृषि के विकास के लिये आवश्यक अवसंरचनाएँ जैसे- परिवहन सुविधा हेतु सड़कें, ट्यूबवेल द्वारा सिंचाई, ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति, भंडारण केंद्रों और अनाज मंडियों का विकास होने लगा।

विभिन्न फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) व अन्य सब्सिडी सेवाओं का प्रावधान भी इसी समय शुरू किया गया। इसी कदम के फलस्वरूप किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलना संभव हो सका। किसानों को दिये जाने वाले इस प्रोत्साहन मूल्य से वे नई कृषि तकनीकी अपनाने में सक्षम हुए।

किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने लिये विभिन्न वाणिज्यिक, सहकारी बैंक तथा कोआपरेटिव सोसाइटी आदि के माध्यम से उन्हें ऋण सुविधाएँ दी जाने लगी। इसी कारण किसान कृषि में लगने वाली लागत को आसानी से इन संस्थाओं से प्राप्त कर सके।

हरित क्रांति तथा मशीनीकरण से उत्पादन में हुई बढ़ोतरी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर विकसित हुए। हरित क्रांति की वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा ओडिशा से लाखों की संख्या में मज़दूर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रोज़गार की तलाश में जाने लगे।

हरित क्रांति के सामाजिक प्रभाव:

हरित क्रांति की वजह से भारत के ग्रामीण समाज में व्यापक स्तर पर बदलाव हुए इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था ग्रामीण समाज का बाज़ारोन्मुख व गतिशील होना। हरित क्रांति के बाद कृषि पूर्व की भाँति मात्र एक जीविकोपार्जन का साधन नहीं रही बल्कि यह अब ग्रामीण समाज के आय का मुख्य स्रोत बन गई है।

किसानों की आय बढ़ने से उनके सामाजिक एवं शैक्षिक स्तर का विकास हुआ।

इसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में स्वकेंद्रण की भावना का विकास हुआ जिससे पारंपरिक संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकल परिवार की व्यवस्था प्रचलन में आई।

हरित क्रांति के कारण लोगों की आय में वृद्धि हुई और इसने ग्रामीण समाज में पारंपरिक रूप से चली आ रही प्रथाओं जैसे- जजमानी प्रथा, वस्तु-विनिमय (Barter) आदि को समाप्त किया।

हरित क्रांति के विषय में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यह छोटे और सीमांत किसानों की तुलना में बड़े किसानों के लिये अधिक लाभप्रद रही। इसका मुख्य कारण नई तकनीकी में लगने वाली अत्यधिक लागत थी जिसे छोटे किसानों द्वारा वहन करना संभव नहीं था।

इसका परिणाम यह हुआ कि धनी व निर्धन किसानों के बीच असमानता बढ़ती गई। कुछ स्थानों पर इस असमानता की वजह से संघर्ष भी हुए।

जहाँ हरित क्रांति ने अर्थव्यवस्था, समाज तथा संस्कृति में बदलाव किये, वहीं इससे कई नैतिक समस्याएँ भी पैदा हुईं। उत्तर भारत के इलाकों के किसानों जैसे- पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नशा, शराब आदि के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ी।

हरित क्रांति का महिलाओं के जीवन पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा। हरित क्रांति से पूर्व महिलाएँ बाहर खेतों में काम करके घर के पुरुष सदस्यों का हाथ बटाया करती थीं लेकिन किसानों की बढ़ती आय तथा मशीनों के बढ़ते प्रयोग से ग्रामीण महिलाओं की स्वतंत्रता कम हुई।

हरित क्रांति के राजनीतिक प्रभाव:

भारतीय राजनीति के क्षेत्र में हरित क्रांति ने दूरगामी प्रभाव डाले। किसानों के नए वर्ग ने स्थानीय स्तर की राजनीति में भाग लेना प्रारंभ किया। पूर्व में राजनीति जहाँ समाज के उच्च जातियों तथा धनी वर्ग द्वारा ही नियंत्रित होती थी उसमें अब समाज के छोटे तबके के लोगों की भागीदारी बढ़ी।

हरित क्रांति ने स्वतंत्रता के बाद ज़मींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार जैसे कदमों के चलते भारत में समतामूलक समाज के निर्माण को गति प्रदान की। इससे छोटे व मध्यम स्तर के किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और इससे उनमें शिक्षा तथा राजनैतिक चेतना का विकास हुआ।

किसान तथा उनसे संबंधित मुद्दों को केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्व दिया जाने लगा। इससे किसानों से संबंधित अनेक संगठनों का निर्माण हुआ तथा पूरे देश में उनकी भूमिका एक दबाव समूह की भाँति निर्मित हुई।

किसान एवं उनसे संबंधित मुद्दे देश के मुख्य राजनीतिक दलों के लिये वोट बैंक बने तथा विभिन्न दलों ने किसानों के मुद्दों की वकालत करना प्रारंभ किया।

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