हरित क्रांति पर निबंध
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हरित क्रांति एक उच्च गुणवत्ता वाले बीज, रासायनिक उर्वरक व नहरी सिंचाई आधारित कृषि उत्पादन की एक नवीन प्रक्रिया थी जिसके द्वारा भारतीय कृषि में गत्यात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास किया गया ।
इसीलिए इसे बीज-उर्वरक-सिंचाई प्रोद्यौगिकी भी कहा जाता है । इसका श्रेय वैश्विक संदर्भ में अमरिकी नागरिक नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग तथा भारतीय सदंर्भ में एम.एस. स्वामीनाथन को दिया जाता है ।
वस्तुतः 1966 ई. के सूखे के बाद भारत में कृषि विकास की नई पद्धति अनिवार्य हो गई थी । यद्यपि इस दिशा में थोड़े बहुत प्रयोग पहले से ही किए जा रहे थे, परंतु 1966-67 में पंजाब व हरियाणा में यह पूरी तरह प्रयोग में आ गया एवं इससे कृषि उत्पादन व कृषि उत्पादकता में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई ।
जहाँ 1951-61 के दशक में कुल उत्पादन वृद्धि 17 मिलियन टन की थी वहीं 1966-76 के दशक में यह वृद्धि 49 मिलियन टन की रही एवं भारत पहली बार खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सका । इसे ही हरित क्रांति कहा गया ।
यह तीन महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर था:
i. विज्ञान आधारित कृषि तकनीक ।
ii. सेवाओं का विशेष पैकेज ।
iii. सार्वजनिक नीति का विशेष पैकेज ।
कृषि की अनिश्चितता में कमी लाना, कृषि उत्पादन व उत्पादकता में वृद्धि करना एवं ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना हरित क्रांति के उद्देश्य थे और उसमें यह काफी हद तक सफल रहा ।