हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतस्य प्रभु परम सुजाना ।।तुरत बँद तब कीन्हि उ पाई। उठि बैठे लछिमन हरषाड़।। प्रस्तुत काव्यांश किस प्रसंग से उद्धृत है। *
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हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥
भावार्थ:-श्री रामजी हर्षित होकर हनुमान्जी से गले मिले। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यंत ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण) ने तुरंत उपाय किया, (जिससे) लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे
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