hari bhari dharti Kya swapna ban ja
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पृथ्वी मनुष्य एवम् सभी प्रकार के जीव जन्तुओं का घर है। प्राकृतिक रूप से इसमें वे सभी आवश्यक तत्व विधमान हैं जो मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक है। इसका अपना एक जीवन चक्र है जिसके कारण सभी को जीवनदायी शक्ति मिलती है। जैसे-जैसे मनुष्य की बुद्धि का विकास होता गया, उसने पृथ्वी के संसाधनों का दोहन करना आरंभ कर दिया और विकास की अंधी दौड़ में उसने पृथ्वी, वायुमंडल तथा उसके जीवनचक्र को ही विनाश की कगार पर लाकर रख दिया। मनुष्य ने विकास तथा प्रगति के नाम पर प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे चारों और प्राकृतिक विनाशिक घटनाएं हो रही हैं। चारों तरफ जंगलों के कटाव तथा इमारतों के बनने से हरे भर जंगल खत्म होने लगे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा हो, तो वह दिन दूर नहीं है, जब यह हरी-भरी धरती बीता स्वप्न बनकर रह जाएगी।
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