Hindi, asked by pankaj7354, 10 months ago

Harihar kaka ki yadi dono patniyan zinda hoti yo parivar ke sadasyon ke saath unke sambandh kaise hote

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Answered by Anonymous
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गाँव के लोग जब भी कहीं बैठते तो बातों का ऐसा सिलसिला चलता जिसका कोई अंत नहीं था। हर जगह बस उन्हीं की बातें होती थी। कुछ लोग कहते कि हरिहर काका को अपनी जमीन भगवान के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उत्तम और अच्छा कुछ नहीं हो सकता। इससे हरिहर काका को कभी न ख़त्म होने वाली प्रसिद्धि प्राप्त होगी। इसके विपरीत कुछ लोगों की यह मानते थे कि भाई का परिवार भी तो अपना ही परिवार होता है। अपनी जायदाद उन्हें न देना उनके साथ अन्याय करना होगा। हरिहर काका के भाई उनसे प्रार्थना करने लगे कि वे अपने हिस्से की जमीन को उनके नाम लिखवा दें। इस विषय पर हरिहर काका ने बहुत सोचा और अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि अपने जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी और को बनाना ठीक नहीं होगा। फिर चाहे वह अपना भाई हो या मंदिर का महंत। क्योंकि उन्हें अपने गाँव और इलाके के वे कुछ लोग याद आए, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ही अपनी जायदाद को अपने रिश्तेदारों या किसी और के नाम लिखवा दिया था। उनका जीवन बाद में किसी कुत्ते की तरह हो गया था, उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं था। हरिहर काका बिलकुल भी पढ़े-लिखे नहीं थे, परन्तु उन्हें अपने जीवन में एकदम हुए बदलाव को समझने में कोई गलती नहीं हुई और उन्होंने फैसला कर लिया कि वे जीते-जी किसी को भी अपनी जमीन नहीं लिखेंगे।

लेखक कहता है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा था महंत जी की परेशानियाँ बढ़ती जा रही थी। उन्हें लग रहा था कि उन्होंने हरिहर काका को फसाँने के लिए जो जाल फेंका था, हरिहर काका उससे बाहर निकल गए हैं, यह बात महंत जी को सहन नहीं हो रही थी। आधी रात के आस-पास देव-स्थान के साधु-संत और उनके कुछ साथी भाला, गंड़ासा और बंदूकों के साथ अचानक ही हरिहर काका के आँगन में आ गए। इससे पहले हरिहर काका के भाई कुछ सोचें और किसी को अपनी सहायता के लिए आवाज लगा कर बुलाएँ, तब तक बहुत देर हो गई थी। हमला करने वाले हरिहर काका को अपनी पीठ पर डाल कर कही गायब हो गए थे।वे हरिहर काका को देव-स्थान ले गए थे। एक ओर तो देव-स्थान के अंदर जबरदस्ती हरिहर काका के अँगूठे का निशान लेने और पकड़कर समझाने का काम चल रहा था, तो वहीं दूसरी ओर हरिहर काका के तीनों भाई सुबह होने से पहले ही पुलिस की जीप को लेकर देव-स्थान पर पहुँच गए थे। महंत और उनके साथियों ने हरिहर काका को कमरे में हाथ और पाँव बाँध कर रखा था और साथ ही साथ उनके मुँह में कपड़ा ठूँसा गया था ताकि वे आवाज़ न कर सकें। परन्तु हरिहर काका दरवाज़े तक लुढ़कते हुए आ गए थे और दरवाज़े पर अपने पैरों से धक्का लगा रहे थे ताकि बाहर खड़े उनके भाई और पुलिस उन्हें बचा सकें।

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