History, asked by harshita4001, 8 months ago

Harith kranti ka kya arth h

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Answered by agarwalpooja0246
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Explanation:

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। ... सिंचाई के लिए आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था, कृत्रिम खाद एवं विकसित कीट नाशक तथा बीज से लेकर अंतिम उत्पाद तक विभिन्न नवीनतम उपकरण व मशीनों की व्यवस्था, हरित क्रान्ति का ही परिणाम माना जाता है।

Answered by abhaykeshwani
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Here is your answer

भारत में हरित क्रांन्ति की शुरुआत सन 1966-67 में प्रारम्भ करने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को जाता हैं।लेकिन भारत में एम. एस. स्वामीनाथन को इसका जनक माना जाता है। हरित क्रांन्ति से अभिप्राय देश के सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाले संकर तथा बौने बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन में वृद्धि करना हैं। हरित क्रान्ति भारतीय कृषि में लागू की गई उस विकास विधि का परिणाम है, जो 1960 के दशक में पारम्परिक कृषि को आधुनिक तकनीकि द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने के रूप में सामने आई। क्योंकि कृषि क्षेत्र में यह तकनीकि एकाएक आई, तेजी से इसका विकास हुआ और थोड़े ही समय में इससे इतने आश्चर्यजनक परिणाम निकले कि देश के योजनाकारों, कृषि विशेषज्ञों तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को ही 'हरित क्रान्ति' की संज्ञा प्रदान कर दी। हरित क्रान्ति की संज्ञा इसलिये भी दी गई, क्योंकि इसके फलस्वरूप भारतीय कृषि निर्वाह स्तर से ऊपर उठकर आधिक्य स्तर पर आ चुकी थी। उपलब्धियाँ

हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। कृषि आगतों में हुए गुणात्मक सुधार के फलस्वरूप देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है। खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आई है। व्यवसायिक कृषि को बढ़ावा मिला है। कृषकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है। कृषि आधिक्य में वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति के फलस्वरूप गेहूँ, गन्ना, मक्का तथा बाजरा आदि फ़सलों के प्रति हेक्टेअर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत परिवर्तन एवं उत्पादन में हुए सुधार के रूप में निम्नवत देखा जा सकता है-

(अ) कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत सुधार

1.रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग

नवीन कृषि नीति के परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों के उपभोग की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है। 1960-1961 में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रति हेक्टेअर दो किलोग्राम होता था, जो 2008-2009 में बढ़कर 128.6 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया है। इसी प्रकार, 1960-1961 में देश में रासायनिक खादों की कुल खपत 2.92 लाख टन थी, जो बढ़कर 2008-2009 में 249.09 लाख टन हो गई।

2.उन्नतशील बीजों के प्रयोग में वृद्धि

देश में अधिक उपज देने वाले उन्नतशील बीजों का प्रयोग बढ़ा है तथा बीजों की नई नई किस्मों की खोज की गई है। अभी तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम गेहूँ, धान, बाजरा, मक्का व ज्वार जैसी फ़सलों पर लागू किया गया है, परन्तु गेहूँ में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई है। वर्ष 2008-2009 में 1,00,000 क्विंटल प्रजनक बीज तथा 9.69 लाख क्विंटल आधार बीजों का उत्पादन हुआ तथा 190 लाख प्रमाणित बीज वितरित किये गये।

3.सिंचाई सुविधाओं का विकास

नई विकास विधि के अन्तर्गत देश में सिंचाई सुविधाओं का तेजी के साथ विस्तार किया गया है। 1951 में देश में कुल सिंचाई क्षमता 223 लाख हेक्टेअर थी, जो बढ़कर 2008-2009 में 1,073 लाख हेक्टेअर हो गई। देश में वर्ष 1951 में कुल संचित क्षेत्र 210 लाख हेक्टेअर था, जो बढ़कर 2008-2009 में 673 लाख हेक्टेअर हो गया।

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