harivansh rai bachchan ki kavita likhne ka uddeshya
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बच्चन जी की रचना ‘मधुशाला’ को अधिकांश लोग मदिरा और मदिरालय से जोड़कर देखते हैं,जबकि असलियत कुछ और ही है।
हरिवंशराय बच्चन जरूर एक आध्यात्मिक व्यक्ति रहे होंगे जिन्होंने सरल शब्दों में जीवन के असली उद्देश्य की तरफ इशारा किया है।
सबसे मशहूर रचना ने भी देखा था बुरा दौर :
मधुशाला पढ़ने वालों को लगता था कि इसके रचयिता शराब के बहुत शौकीन होंगे लेकिन हकीकत तो यह थी कि हरिवंश राय ने अपने जीवन में कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया। इसकी सबसे चर्चित और शुरुआती लाइन यह है…
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला,
पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला
‘मधुशला’ उस दौर का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला कविता संग्रह था। इसे पसंद करने वालों में खास तौर पर वह लोग शामिल थे जो कविता के साथ-साथ शराब का भी शौक रखते थे। ऐसे में बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव को लगता था कि इस कविता संग्रह से देश के युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है और वह शराब की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके चलते वो हरिवंश से काफी नाराज़ भी हो गए थे। उस दौर में मधुशाला का और भी कई जगह विरोध हुआ था।
मधुशाला के बाद साल 1936 में बच्चन का कविता संग्रह ‘मधुबाला’ और 1937 में ‘मधुकलश’ आया। उनकी यह रचनाएं भी खूब प्रसिद्ध हुईं। उनके सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रहों में ‘निशा निमंत्रण’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अंतर’ और ‘सतरंगिनी’ जैसे कुछ नाम शामिल हैं। वहीं उनकी रचना ‘दो चट्टाने’ को साल 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए बच्चन को साल 1976 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी, जिसे चार खंडों में प्रकाशित किया गया था। इनका नाम, ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’ है।