हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
॥ स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।3।-
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कबीर दास जी ने प्रस्तुत पंक्तियों हमें संसार के द्वारा की जाने वाली निंदा की परवाह किये बिना ज्ञान के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। उनके अनुसार, जब हाथी चलते हुए किसी गली-मोहल्ले से गुजरता है, तो गली के कुत्ते व्यर्थ ही भौंकना शुरू कर देते हैं। असल में, उनके भौंकने से कुछ बदलता नहीं है और हाथी उनके भौंकने की परवाह किए बिना स्वाभाविक रूप से सीधा अपने मार्ग में चलते जाता है।
ठीक इसी तरह कवि चाहते हैं कि हम अपने ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होकर, इस समाज की निंदा की परवाह किये बिना, निरंतर भक्ति के मार्ग पर चलते रहे। कबीर जी के अनुसार, जब भी आप कोई ऐसा काम करेंगे, जो साधारण मनुष्य के लिए कठिन हो या फिर सबसे अलग हो, तो आपके आस-पड़ोस या समाज के लोग आपको ऐसी बातें कहेंगे, जिनसे आपका मनोबल कमजोर हो जाए। इसीलिए कवि चाहते हैं कि हम इन बातों को अनसुना करके, अपना मनोबल ऊँचा करके अपने कर्म पर ध्यान दें।
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